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________________ परामनोवैज्ञानिकों की दृष्टि में पुनर्जन्म और कर्म ९५ एवं रोचक सच्ची घटनाएँ छपी हैं। इन सब घटनाओं पर से पाश्चात्यविचारकों को भी पूर्वजन्म - पुनर्जन्म के सिद्धान्त के अध्ययन की ओर आकर्षित किया है।' डॉ. स्टीवेंसन द्वारा पुनर्जन्म की घटनाएँ प्रस्तुत वर्जीनिया विश्वविद्यालय, अमेरिका के चिकित्सा विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ. हयान स्टीवेंसन ने 'आत्मा की खोज' विषय को लेकर विश्वभ्रमण किया। उन्होंने पूर्वजन्म और पुनर्जन्म को आत्मा एवं कर्म के 'चिरस्थायी अस्तित्व का मूल आधार माना; और इसके लिए भारतवर्ष में आए। भारत को अपने परामनोवैज्ञानिक शोधकार्य के लिए उन्होंने विशेष उपयुक्त समझा। इसका कारण उन्होंने यह बताया कि भारतीय धर्म-परम्पराओं में पुनर्जन्म को स्वीकार किया गया है। इसलिए पिछले जन्म की स्मृतियाँ बताने वाले बालकों की बातें यहाँ दिलचस्पी से सुनी जाती हैं, और उनसे प्रामाणिक तथ्य उभरकर सामने आते रहते हैं। डॉ. स्टीवेंसन ने बर्मा, थाईलैण्ड, श्रीलंका आदि बौद्ध धर्म प्रधान देशों में भी पुनर्जन्म की उपयोगी घटनाओं का अध्ययन किया। इसके अतिरिक्त लेबनान, टर्की, सीरिया, साइप्रस तथा अन्य कई यूरोपीय देशों में भी, जहाँ भी पता चला, वे स्वयं अपनी टीम के साथ गए, घटना का अध्ययन करके उसकी प्रामाणिकता की जांच की तथा गहराई से छानबीन भी की। तत्पश्चात् नये-नये तथ्य और आश्चर्यजनक निष्कर्ष प्रस्तुत किये। बौद्ध देशों या यूरोपीय देशों में भी अधिक विवरण दिये जाने से पुनर्जन्म की घटनाओं की छानबीन आसानी से की जा सकती है। डॉ. स्टीवेंसन ने संसारभर से लगभग ६०० ऐसी घटनाएँ एकत्रित की हैं, जिनमें उन-उन व्यक्तियों द्वारा बताये गये उनके पूर्वजन्मों के अनुभव प्रामाणिक सिद्ध हुए हैं। इनमें से १७० प्रमाण तो अकेले भारत के हैं। इनमें बड़ी आयु के लोग बहुत कम हैं। तीन से लेकर पांच वर्ष तक के अधिकांश बालक हैं। नवोदित कोमल मस्तिष्क एवं निश्छल सरल हृदय पर पूर्वजन्म की छाया अधिक स्पष्ट रहती है। आयु बढ़ने के साथ-साथ वर्तमान जन्म १. (क) जैनदर्शन में आत्मविचार (डॉ. लालचन्द्र जैन) पृ. २२२ (ख) देखें—'कल्याण' (मासिक पत्र) का पुनर्जन्म - विशेषांक २. (क) अखण्ड ज्योति, जुलाई, १९७४ में प्रकाशित 'मरने के बाद भी आत्मा का अस्तित्व' लेख से सारांश (ख) जैनदर्शन में आत्मविचार (डॉ. लालचन्द्र जैन) पृ. २२२ For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004242
Book TitleKarm Vignan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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