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कर्म-विज्ञान : कर्म का अस्तित्व (१)
'मेरा दोस्त अब्दुल्ला कपड़े की दुकान करता है। उसकी पहली बीवी के कोई सन्तान नहीं है। वह दूसरी शादी करना चाहता है। उसमें किसी प्रकार का कोई ऐब नहीं है। आप चाहें तो 'नूर' की शादी उसके साथ कर सकते हैं।' पिताजी ने उक्त युवक से बात करके उसके साथ मेरी शादी कर दी। मैं अपने पीहर के दया धर्म के संस्कारवश मांसाहार से सख्त नफरत करती थी। ससुराल में भी मुझे मांसाहार से परहेज रहा। मेरे पति ने भी मांस खाना छोड़ दिया। पर मेरी सौत मांस खाती थी। वह मेरे साथ कलह करती, मुझे तंग करती और जली-कटी सनाती रहती थी। मैं दो बच्चों की मां बन गई, यह उसकी आँखों में खटकता था। एक दिन मैं रात को पानी भरने के लिए पास वाले कुंए पर गई। मुझे मार डालने की नीयत से मेरी सौत ने पीछे से आकर मुझे धक्का दे दिया। मैं कुंए में गिर गई। पीछे क्या हुआ, मुझे नहीं मालूम। अब भी मुझे मासूम बच्चों की याद आती है तो मैं छटपटाती हूँ।" यों कहकर वह आँसू बहाने लगी। केवलमुनिजी ने उसे आश्वासन देकर समझाया-"ये तो जीते-जी के जंजाल हैं। पिछले जन्मों में तुमने कई परिवारों को छोड़ा, उसकी चिन्ता नहीं करती, तो इस पिछले जन्म के परिवार की भी चिन्ता मत करो। वर्तमान जन्म को सुधारने की चिन्ता करो।"
मीना का यह पूर्वजन्म मुस्लिम-परिवार से सम्बद्ध था; किन्तु उसके दयाधर्म के प्रबल संस्कारों के फलस्वरूप पूर्वकृत शुभकर्मोदय से मरने के बाद जैनधर्मी परिवार में उसका जन्म हुआ। सभी धर्मों के परिवारों में घटित घटनाएँ : पूर्वजन्म को सिद्ध करती है
इस प्रकार ईसाई, मुसलमान, जैन, बौद्ध, हिन्दू आदि सभी धर्मपरम्परा के बच्चों की पूर्वजन्म और पुनर्जन्म की स्मृति की घटनाएँ परामनोवैज्ञानिकों ने एकत्र की हैं और उन पर पर्याप्त जांच-पड़ताल करने के पश्चात् वे सभी सत्य सिद्ध हुई। इस पर से परामनोवैज्ञानिकों का कथन है कि “पूर्वजन्म और पुनर्जन्म का सिद्धान्त उपहासास्पद, भ्रान्तियुक्त या अन्धविश्वासपूर्ण नहीं है, अपितु यह सत्य और प्रत्यक्ष अनुभव के धरातल पर स्थित अकाट्य सिद्धान्त है।" कुछ वर्षों पूर्व 'गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित 'कल्याण' (मासिक पत्र) के पुनर्जन्म-विशेषांक में देश-विदेश के सभी धर्मपरम्परा के बालकों की पूर्वजन्म-स्मृति से सम्बन्धित आश्चर्यजनक १. उपाध्याय श्री केवलमुनिजी द्वारा लिखित 'दो आंसू' (कहानी संग्रह) से सार-संक्षेप,
पृ. १ से २०
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