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________________ षट्प्राभूते [१. १९कालेऽदु वनिति द्रव्याणि जीव-पुद्गल-धर्माधर्म-कालाकाशनामानि । (गव पयत्या ) नव पदार्था जीवाजीव-पुण्य-पापासव-बन्ध-संवर-निर्जरा-मोक्ष-नामानः। . (पंचत्थी ) पञ्चास्तिकाया जीव-पुद्गल-धर्माधर्माकाशनामानः पञ्चास्तिकाया उच्यन्ते ( सत्त तच्च णिट्ठिा ) सप्त तत्वानि निर्दिष्टानि कथितानि जीवाजीवालव-बन्ध-संवर-निर्जरा-मोक्षनामानि । (सदहइ ताण एवं ) श्रद्दधाति तेषां स्वरूपम् । ( सो सद्दिट्ठी मुणेयव्वो) स पुमान् सदृष्टिरिति मन्तव्यो मातव्यः । तेषु द्रव्यादिषु जीवः सचेतनः । पुद्गलो धर्मोऽधर्मः काल आकाशश्च पञ्चा- . चेतनाः । षड्विषोऽपि पुद्गलो मूर्तः । इतरे पञ्चामूर्ताः । जीव-पुद्गलयोर्गतः कारणं धर्मः । सर्वेषां स्थितेः कारणमधर्मः सर्वेषामाधारमाकाशः । वर्तनालक्षणः कालः रत्नानां राशिवद् भिन्नपरमाणुकः । धर्माधर्माकाशा अखण्डप्रदेशाः । कालपुद्गलयोर्जीवानां च प्रदेशेषु खण्डत्वम्, नत्वेकजीवस्य प्रदेशानां खण्डत्वम् । धर्माधर्म-कालाकाशाश्चत्वारो गमनागमनरहिताः। गमनागमने जीव-पुद्गला विशेषार्थ-जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, काल और आकाश ये छह द्रव्य हैं । द्रव्य शब्द का निरुक्त्यर्थ इस प्रकार है-जो वर्तमान काल में गण और पर्यायों को प्राप्त हो रहे हों, जो भविष्यत् काल में गुण और पर्यायों को प्राप्त होंगे, और जो भूत काल में गुण तथा पर्यायों को प्राप्त होते थे वे द्रव्य हैं। जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये नो पदार्थ हैं। जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश ये पांच अस्तिकाय कहलाते हैं। जोव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये सात तत्त्व कहे गये हैं। उनके स्वरूप का जो श्रद्धान करता है वह सम्यग्दृष्टि है। उन द्रव्यादिक में जीव सचेतन है; पुद्गल, धर्म, अधर्म, काल और आकाश ये पांच अचेतन हैं। बादरबादर, बादर, बादर-सूक्ष्म, मूक्ष्म-बादर, सूक्ष्म और सूक्ष्म-सूक्ष्म; यह छहों प्रकारका पुद्गल मूर्तिक है; बाकी पाँच द्रव्य अमृतिक हैं। जोव और पुद्गल द्रव्य को गति का कारण धर्म द्रव्य है । सब द्रव्यों की स्थिति का कारण अधर्म द्रव्य है। सब द्रव्यों का आधार आकाश द्रव्य है। काल द्रव्य वर्तना लक्षण से युक्त है तथा रत्नों को राशि के समान भिन्न भिन्न परमाणु रूप है । धर्म, अधर्म और आकाश अखण्डप्रदेशी हैं । नाना कालाणु, पुद्गलाणु और नाना जीवों के प्रदेश सखण्ड हैं; परन्तु एक जीव के प्रदेश सखण्ड नहीं है। धर्म, अधर्म, काल और आकाश ये चार द्रव्य गमनागमन से रहित हैं। गमनागमन सिद्ध जीवों को छोड़ कर सब संसारी जीवों और पुद्गल द्रव्यों में ही होते हैं, अन्य द्रव्यों में नहीं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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