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________________ -८ ३९-४० ] भावप्रामृतम् सव्वगुणखीणकम्मा सुक्खविवज्जिदा मणविसुद्धा | पप्फोडियकम्मरया हवंति आराहणापडा ॥ ३९ ॥ सर्वंगुणक्षीणकर्माणः सुखदुःखविवर्जिता मनोविशुद्धाः । प्रस्फुटितकर्मरजसः भवन्ति अराधनाप्रकटाः ॥ ३९ ॥ अरहंते सुहभत्ती समत्तं दंसणेण सुविसुद्धं । सीलं विसयविरागो गाणं पुण केरिसं भणियं ॥ ४० ॥ अर्हति शुभभक्तिः सम्यक्त्वं दर्शनेन सुविशुद्धं । शीलं विषयविरागो ज्ञानं पुनः कीदृशं भणितं ॥ ४० ॥ इति श्रीकुन्दकुन्दाचार्यविरचितशीलप्राभृतकं समाप्तं । ७०९ जो विषयों से विरक्त हैं, जो तप को धन मानते हैं, धीर वीर हैं और जिन्होंने शील रूपी जल से स्नान किया है वे सिद्धालय के सुख को प्राप्त होते हैं । भावार्थ -- जो पुरुष जिनवाणी का सार ग्रहण कर विषयोंसे विरक्त होते हुए तप धारण करते हैं दृढ़ता से तपकी रक्षा करते हैं तथा सदा समता भाव रखते हैं वे जोव मोक्ष के सुख को प्राप्त होते हैं ॥ ३८ ॥ सव्वगुण - जिन्होंने समस्त गुणों से कर्मों को क्षीण कर दिया है, जो सुख और दुःख से रहित हैं, मन से विशुद्ध हैं और जिन्होंने कर्मरूपी धूलि को उड़ा दिया है ऐसे आराधनाओं को प्रकट करने वाले होते हैं। भावार्थ - जिन जीवों के दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप ये चार आराधनाएँ प्रकट होती हैं अर्थात् पूर्णता को प्राप्त होती हैं वे समस्त मूलगुणों और उत्तरगुणों के द्वारा कर्मों को क्षीण करते हैं अर्थात् उनकी स्थिति तथा अनुभाग को क्षीण कर देते हैं आत्मानुभव की मुख्यता के कारण उनका सांसारिक सुख दुःख का विकल्प छूट जाता है, उनका हृदय अत्यन्त शुद्ध हो जाता है और कर्मरूपी धूली को उड़ाकर कर्म रहित हो जाते हैं। आराधनाओं का फल मोक्ष प्राप्ति है यदि आराधनाओं के पूर्ण रूप से प्रकट होने में न्यूनता रह जाय तो स्वर्गं की प्राप्ति होती है वहाँ से आने के बाद फिर मोक्ष की प्राप्ति होती है ॥ ३९ ॥ अरहंते — अरहन्त भगवान् में शुभभक्ति होना सम्यक्त्व है, यह सम्यक्त्व तत्त्वार्थं श्रद्धान से अत्यन्त शुद्ध है और विषयों से विरक्त होना Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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