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________________ ६८६ पट्मागते [७.९-१०जो जोडदि विव्वाहं किसिकम्मवणिज्जजीवधादं च। ... वच्चदि गरयं पाओ करमाणो लिंगिहवेण ॥ ९॥ यः र्याजयति विवाहं कृषिकर्मवाणिज्यजीवघातं च । व्रजति नरकं पापः कुर्वाणः लिगिरूपेण ॥९॥ चोराण मिच्छवाण य जुद्ध विवाहं च तिव्वकम्मेहि । जतेण दिव्यमाणो गच्छदि लिंगी गरयवासं ॥१०॥ चोराणां मिथ्यावादिनां युद्धं विवादं च तीवकर्मभिः। यंत्रेण दीव्यमानः गच्छति लिंगी नरकवास ॥१०॥ जो जोडदि-जो मनिका लिङ्ग रखकर भी दूसरों के विवाह सम्बन्ध जोड़ता है तथा खेतो और व्यापार के द्वारा जीवों का घात करता है वह चुकि मुनिलिङ्ग के द्वारा इस कुकृत्य को करता है अतः पापी है और नरक जाता है। भावार्थ-जो पुरुष नग्न मुद्राका धारी होकर दूसरों के विवाह सम्बन्ध जुड़वाता है और खेती तथा व्यापार के द्वारा जीव घात करता है वह नियम से नरक जाता है । गृहस्थ ने अपने पदके अनुकूल इन कार्योंका त्याग नहीं किया है इसलिये वह इन्हें करता हुआ भी नरक का पात्र अनिवार्य रूप से नहीं होता परन्तु जो मनुष्य मुनिलिङ्ग धारण कर इन कुकृत्यों को करता है वह नियम से नरक का पात्र होता है ॥९॥ चोराण-जो लिङ्गी चोरों के तथा झूठ बोलने वालों के युद्ध और विवाद को कराता है तथा तीव्रकर्म-खर कर्म अर्थात् जिनमें अधिक हिंसा होती है ऐसे कार्योसे और यन्त्र अर्थात् चौपड़ आदिसे क्रीड़ा करता है वह नरकवासको प्राप्त होता है। भावार्थ-मुनिका वेष रखकर भी जो मनुष्य पैशुन्य कार्य से चोरों तथा असत्यवादियों को परस्पर लड़ा देता है उनमें विवाद-संघर्ष पैदा कर देता है, अत्यधिक हिंसा के कार्यों से विनोद करता है, तथा चौपड़, शतरंज, पासा और हिंडोला आदि यन्त्रोंके द्वारा क्रीड़ा करता है वह नियम से नरक को प्राप्त होता है ॥१०॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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