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________________ षट्प्राभृते [१.९श्चतुरशीतिगुणा भवन्ति । ते पृथिव्यादिशतजीवसमासंगुणिताश्चतुरशीतिशतानि । गुणा भवन्ति । ते दशशीलविराधनगुणिताश्चतुरशीतिसहस्राणि गुणा भवन्ति । कास्ताः शीलविराधनाः ? स्त्रीसंसर्गः १, सरसाहारः २, सुगन्धसंस्कारः ३, कोमलशयनासनं ४, शरीरमण्डनं ५, गीत-वादित्रश्रवणं ६, अर्थग्रहणम् ७, . कुशीलसंसर्गः ८, राजसेवा ९, रात्रिसंचरणम् १०, इति दश शीलविराधनाः । ते आकम्पितादिदशालोचनादोषत्यागैर्दशभिर्गुणिताः चत्वारिशत्सहस्राधिकाष्टलक्षाणि गुणा भवन्ति । उत्तमक्षमादिदशधर्मगुणिताश्चतुरशीतिलक्षाणि गुणा भवन्ति । अथातिक्रमादयश्चत्वारः के ? 'अतिक्रमस्ताव द्विशिष्टमतित्यागः । व्यतिक्रमः शीलवृतिलङ्घनम् । अतिचारो विषयेषु प्रवर्तनम् । अनाचारो विषयेष्वत्यासक्तिः । के ते दशालोचनादोषाः ? तदर्थनिरूपिका गाथेयम्___ आकपिअ अणुमाणिअ जं दिटू बादरं च सुहमं च । छन्नं सदाउलयं बहुजणमन्वत्त तस्सेवी ॥ अस्या अयमर्थ:-आकम्पिअ-आकम्पो भयमुत्पद्यते मा बहुदण्डं दासीदाचार्य: कायिकादि सौ जीवसमासों का गुणा करने पर ८४०० गुण होते हैं । इनमें शील को दश विराधनाओं का गुणा करने पर ८४००० गुण होते हैं। इनमें आकम्पित आदि आलोचना के दश दोषों के त्याग का गुणा करने से ८,४०००० आठ लाख चालीस हजार गुण होते हैं और इनमें उत्तम क्षमा आदि दश धर्मों का गुणा करने पर ८४००००० चौरासी लाख गुण होते हैं। ___ स्त्रीसंसर्ग १ सरसाहार २ सुगन्धसंस्कार ३ कोमलशयनासन ४ शरीरमण्डन ५ गीत-वादित्रश्रवण ६ अर्थग्रहण ७ कुशीलसंसर्ग ८ राजसेवा ९ और रात्रिसंचरण १० । ये शोल की दश विराधनाएं हैं। विशिष्ट बुद्धि अर्थात् मानसिक शुद्धि का त्याग करना अतिक्रम है। शील रूपी वाड़ का उल्लघंन करना व्यतिक्रम है। विषयों में प्रवृत्ति करना अतिचार है। और विषयों में अत्यन्त आसक्त हो जाना अना. चार है। आलोचना के दश दोषों का निरूपण इस गाथा में किया गया है १, क्षतिं मनःशुद्धिविधेरतिक्रमं व्यतिक्रमं शोलवृतेविलड़ धनम् । प्रभोऽतिचारं विषयेषु वर्तनं वदन्त्यनाचारमिहातिसक्तताम् ॥९॥ -द्वात्रिंशतिकायाम् अमितगतः। २. मूलाराधनायां शिवकोट्याचर्यस्य । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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