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________________ ६२७ -६. ५४] मोक्षप्राभृतम् 'आवलि असंखसमया संखेज्जावलिहि होइ उस्सासो। सत्तुस्सासो थोओ सत्तत्थोओ लवो भणिओ ॥१॥ अठ्ठत्तीसद्धलवा नाली दो नालिया मुहुत्तं तु । समऊणं तं भिण्णं अंतमुहुत्तं अणेयविहं ॥ २ ॥ इति गाथाद्वयकथितक्रमेण आवल्या उपरि एकः समयोऽधिको भवति सोऽन्तमुहूर्तो जघन्यः कथ्यते । एवं ब्यादिसमयवृद्धया समयद्वयहीनोऽन्मुहूर्त उत्कृष्टः कथ्यते । मध्येऽसंख्यातभेदा अन्तर्मुहूर्तस्य ज्ञातव्याः । तेषु कस्मिदन्तर्मुहूर्ते ज्ञानी कर्म क्षपयति । एकेन समयेन हीनो मुहूर्तो भिन्नमुहूर्त उच्यते इति भावः । सुभजोगेण सुभावं परदब्वे कुणइ रागदो साह । सो तेण दु अण्णाणी गाणी एत्तो दु विवरीदो ॥५४॥ __ शुभयोगेन सुभाव परद्रव्ये करोति रागतः साधुः । स तेन तु अज्ञानी ज्ञानो एतस्माद्विपरीतः ॥५४॥ ( सुभजोगेण सुभावं ) शुभस्य मनोज्ञपदार्थस्येष्टवनितादेः योगेन संयोगेन मेलनेनोपढौकनेनाग्रत आगतेन सुभावं- शोभनं प्रीतिलक्षणं भावं परिणाम । (पर प्रश्न-अन्तर्मुहूर्त क्या है ? उत्तर-असंख्यात समय की एक आवलि होती है, संख्यात आवलियों का एक उच्छ्वास होता है, सात उच्छ्वास का एक स्तोक होता है, सात स्तोकों का एक लव कहा गया है। साढ़े अड़तीस लव की एक नाड़ी होती है, दो नाड़ियों का एक मुहूर्त होता है। एक समय कम एक मुहूर्त को भिन्न मुहूर्त कहते हैं । अन्तर्मुहूर्त अनेक प्रकार का होता है। ___ इन दो गाथाओं में कहे हुए क्रमसे आवली के ऊपर एक समय अधिक होने पर जघन्य अन्तर्मुहूर्त कहलाता है। इस प्रकार दो तीन आदि समय बढ़ाते बढ़ाते जब मुहूर्त में दो समय कम रह जाते हैं तब वह उत्कृष्ट अन्तमुहर्त कहलाता है। बीच में अन्तमहर्त के असंख्यात भेद जानना चाहिये । इनमें से किसी भी अन्तर्मुहूर्त में ज्ञानी जीव कर्मोको नष्ट कर देता है। एक समय से कम मुहूर्त को भिन्न मुहूर्त कहते हैं ॥५३॥ आगे ज्ञानी और अज्ञानी मुनिका लक्षण प्रकट करते हैं गाथार्थ-जो साधु शुभ पदार्थ के संयोग से रागवश परद्रव्य में प्रीतिभाव करता है वह अज्ञानी है और इससे जो विपरीत है वह ज्ञानी है ।।५४॥ १. जीवकाण्डे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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