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षट्प्राभृते . [६.४६तावत्तत्र कोऽपि न दृष्टः । जेष्ठा तु लज्जिता "अह वृहद्भगिन्या वंचिता" इति वैराग्येण पितृष्वसुर्यशस्वत्या 'श्चैत्यालये स्थितायाश्चरणमूले दीक्षां जग्राह । कनकांचनवायाः कन्याया वार्ता श्रुत्वा सत्यकिर्नाम कुमारः संसाराद्विरक्तो राज्यलक्ष्मी परित्यज्य समाधिगुप्त नत्वा जिनदीक्षामग्रहोत् । त्रिगुप्तिगुप्तः सन् स तपस्तीव्र कुर्वाण उत्तरगोकर्णमद्रि मुक्त्वा कदाचित् राजगृहनगरसमीपे उच्चग्रीवपर्वते स्थितः। एकस्मिन् दिने तद्गुणनुरागिण्यस्तत्रत्यार्यास्तं वन्दितुमागताः । वन्दित्वा यावतगिरेरवतरन्ति तावन्महामेघवृष्टिरागता । आर्यास्तु स्तिम्यन्त्यो विव्हलीभूतं यत्र तत्र गताः । जेष्ठाया सात्यकिमुनेगुहां प्रविष्टा । तत्र वस्त्रं निष्पोलयन्ती ज्येष्ठा सात्यकिना मुनिना दृष्टा । समुत्पन्नकामोद्रेकेण
और उनकी रानी सुप्रभादेवी के ज्येष्ठा नामकी पुत्री हुई । ज्येष्ठा सात्यकि के लिये पहले ही दे दी थी परन्तु विवाह नहीं हुआ था। ___ इसी बीच में महाराज श्रेणिक का पुत्र धूर्त अभय कुमार कन्या के लिये सेठ बन कर वहां आया। वहां उसने राजा की दो पुत्रियों चेलना
और ज्येष्ठा को चला दिया और उपाय कर सुरङ्ग द्वारा निकल गया। उन दोनों पुत्रियों में चेलना ने ज्येष्ठा को आभरण आदिके बहाने वापिस लौटा दिया और स्वयं अकेली श्रेणिकके पास आ गई । जिन प्रतिमा लेकर जब ज्येष्ठा वहाँ पहँची तब वहाँ कोई नहीं दिखा। इस घटना से ज्येष्ठा बहुत लज्जित हुई 'मैं बड़ी बहिन के द्वारा ठगी गई'.इस अभिप्राय से विरक्त होकर उसने अपनी बुआ यशस्वती नामकी आर्यिका के जो कि जिन मन्दिर में रहती थीं चरण मूलमें दोक्षा धारण कर ली । देदीप्यमान सुवर्णके समान वर्ण वाली ज्येष्ठा कन्याका दीक्षा लेने का समाचार सुनकर सात्यकि नामक कुमार भी संसारसे विरक्त हो गया। उसने राज्यलक्ष्मी का परित्याग कर समाधि गुप्त नामक मुनिराज को नमस्कार पूर्वक जिनदीक्षा ले ली। तीन गुप्तियोंसे युक्त होकर तीव्र तप तपश्चरण करते हुए सात्यकि मुनि एकबार उत्तर गोकर्ण पर्वत को छोड़कर राजगृह नगर के समीप उच्चग्रीव पर्वत पर स्थित हुए। एक दिन उनके गुणों में अनुराग रखनेवाली आर्यिकाएं उनकी वन्दना करनेके लिये आईं । वन्दना करके ज्योंही ही वे पर्वत से उतरने लगी त्योंही बहुत भारी मेघवृष्टि आ पहुंची । आर्यिकाएँ भोंग कर विह्वल होती हुई इधर उधर चली गईं। परन्तु जेष्ठा नामकी आर्यिका सात्यकि मुनिकी गुफा में प्रविष्ट हुई । वहाँ
१. बार्यिकायाः।
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