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________________ ६०४ षट्प्राभूते [ ६. ४३ ( जं जाणिऊण जोई ) यज्ज्ञात्वा विज्ञाय योगी जैनी मुनिः । ( परिहारं पुणइ पुण्णपावाणं ) परिहारं परित्यागं करोति पुण्यपापयोः । ( तं चारितं भणियं ) तदात्मना सहकलोलीभावः तन्मयत्वं तत्परत्वं तन्निष्ठत्वं तदेकतानत्वं चारित्रं परमोदासीनतालक्षणं भणितं प्रतिपादितं । केन, ( कम्मरहिएण ) घाति कर्मविध्वंसकेन सर्वज्ञेन । तत्कथंभूतं चारित्रं, ( अवियप्पं ) अविकल्पं संकल्पविकल्परहितं निर्विकल्पसमाधिलक्षणं यथाख्यातनामकं । जो रयणत्तयजुत्तो कुणइ तवं संजदो ससत्तीए । सो पावइ परमपयं झायंतो अप्पयं सुद्धं ॥ ४३ ॥ यो रत्नत्रययुक्तः करोति तपः संयतः स्वशक्त्या । स प्राप्नोति परमपदं ध्यायन् आत्मानं शुद्धम् ||४३|| ( जो रयणत्तयजुत्तो ) यो जैनो मुनी रत्नत्रययुक्तः सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रसहितः सम्यक्श्रद्धानज्ञानानुष्ठानसमुपेतः ( कुणइ तवं संजदो ससत्तीए ) करोति विदधाति सम्यगनुतिष्ठति, किं तत् ? तर इच्छानिरोध लक्षणं आत्मनि ज्ञानवत्तया परिहार करता है उसे कर्म- रहित सर्वज्ञ देवने निर्विकल्पक चारित्र कहा है ॥ ४२ ।। विशेषार्थ - चारित्र का यथार्थ लक्षण आत्मस्वरूप में स्थिरता है । जब तक इस जीव की पुण्य अथवा पाप में प्रवृत्ति होती रहती है तब तक स्वरूप की स्थिरता नहीं होती क्योंकि पुण्य और पाप की प्रवृत्ति कषायसे जन्य है तथा कषाय- जन्य होनेसे उसमें अनेक संकल्प-विकल्प उठते रहते है । संकल्प - विकल्प दशा में निर्विकल्प समाधिरूप यथाख्यातचारित्र का प्रकट होना असंभव है, इसलिये आचार्य महाराज ने कहा कि योगी-जैन मुनि वस्तुरूपको जानकर जो पुण्य और पाप दोनोंका परित्याग करता है अर्थात् परम शुद्धोपयोग रूप अवस्था को प्राप्त होता है उसे घातिया कर्मों का क्षय करने वाले सर्वज्ञदेवने निर्विकल्प समाधि रूप यथाख्यात नामका चारित्र कहा है || ४२॥ गाथार्थ - रत्नत्रय को धारण करने वाला जो मुनि शुद्ध आत्मा का ध्यान करता हुआ अपनी शक्ति से तप करता है वह परम पद को प्राप्त होता है ||४३|| Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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