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________________ ६०२ षट्नाभृते [६. ४०(सणसुद्धो लहइ णिग्वाणं ) दर्शनशुद्धः पुमांल्लभते निर्वाणं मोक्षं । (दसणविहीणपुरिसो) दर्शनविहीनः पुरुषः सम्यग्दर्शनरहितः पुमान् सम्यक्त्वविवर्जितो जीवः । ( न लहइ तं इच्छियं लाहं ) न लभते न प्राप्नोति तं जगत्प्रसिद्धं योगिनां प्रत्यक्षं इष्टं लाभं सर्वकर्मक्षयलक्षणं मोक्षपदार्थ । । इय उवएसं सारं जरमरणहरं खु मण्णए जंतु। . तं सम्मत्तं भणियं समणाणं सावयाणं पि ॥४०॥. इति उपदेशः सारो जन्ममरणेहरं स्फुटं मन्यते यत्तु । तत् सम्यक्त्वं भणितं श्रमणानां श्रावकाणामपि ॥४०॥ . . ( इय उवएस सार ) इतीदृश उपदेशः संबोधनवचनं, सारं-सारः श्रेष्ठतरः । श्रेष्ठे 'बले स्थिरस्वान्ते मज्जायां सार उच्यते । .. . जले न्याय्ये घने विद्भिः सारमुक्तं नपुसके ॥१॥ (जरमरणहरं खु मण्णए ज तु) जरामरणहरं जरामरणविनाशकं इमं उपदेशं मन्यते श्रद्दधाति यत्तु यत् श्रद्धत्ते तु पुनः । (तं सम्मत्तं भणियं ) तत्स: म्यक्त्वं भणितं प्रतिपादित । ( समणाणं सावया पि ) श्रमणानां अनगारयतीनां श्रावकाणामपि गृहस्थानां । अपिशब्दाच्चातुर्गतिकजीवानामपि । ww जिस मनुष्य का सम्यग्दर्शन शुद्ध है वह निर्वाण को प्राप्त होता है । सम्यग्दर्शन से रहित मनुष्य इष्ट लाभको-सर्वकर्मक्षय रूप मोक्षको नहीं पाता ॥ ३९ ॥ गाथार्थ-यह श्रेष्ठतर उपदेश स्पष्ट हो जन्म मरण को हरने वाला है इसे जो मानता है-इसकी श्रद्धा करता है वह सम्यक्त्व है । यह सम्यक्त्व मुनियों के, श्रावकों के तथा चतुर्गति के जीवोंके होता है ॥४०॥ विशेषार्थ-यहाँ सार शब्दका अर्थ श्रेष्ठतर-अत्यन्त श्रेष्ठ है । जैसा कि कहा है__ श्रेष्ठेबले-पुलिङ्ग में सार शब्द श्रेष्ठ, बल, दृढ़चित्त ओर मज्जा अर्थ में कहा जाता है और नपुंसक लिङ्गमें सार शब्द जल, न्यायपूर्ण बात और धन अर्थ में विद्वानों द्वारा प्रयुक्त होता है। इस पूर्वोक्त अत्यन्त श्रेष्ठ उपदेशका जो जरा और मरणका नाश करनेवाला मानता है वह सम्यक्त्व कहा गया है। यह सम्यग्दर्शन श्रमण-दिगम्बर मुनियों के, श्रावकों के और अपि शब्द से चारों गतियों १. अमरेज्युक्त-"मारो बले स्थिरांशे न्याय्ये क्लीवं वरे त्रिषु ।" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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