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________________ -६. १७-१८] मोक्षप्राभृतम् ५८१ त परदव्वं सदव्वं च केरिसं हवदि । तं जहातत्परद्रव्यं स्वद्रव्यं च कीदृशं भवति । तद्यथा-तदेव निरूपयंत्याचार्याः आदसहावादणं सच्चित्ताचित्तमिस्सियं हवदि । तं परदव्वं भणियं अवितत्थं सव्वदरसोहि ॥१७॥ आत्मस्वभावादन्यत् सचित्ताचत्तिमिश्रितं भवति । तत् परद्रव्यं भणितं-अवितथं सर्वदर्शिभिः ॥१७॥ ( आदसहावादण्णं ) आत्मस्वभावादन्यत् पुद्गलादिद्रव्यं । ( सच्चिताचित्तमिस्सियं हवदि ) सचित्तं विद्यमानचेतनं इष्टवनितादिकं अचित्तं अचेतनं घनकनकवसनादिकं, मिश्रितं आभरणवस्त्रादिसंयुक्तं कलत्रादिकं भवति । ( तं परदवं भणियं ) तत्परद्रव्यं भणितं-आगमे प्रतिपादितं । ( अवितत्थं सव्वदरिसीहिं ) अवितथं सत्यरूपं सर्वदर्शिभिः श्रीमद्भगवत्सर्वज्ञवीतरागैरिति शेषः ॥ दुटुकम्मरहियं अणोवमं णाणविग्गहं णिच्चं । सुद्धं जिणेहि कहियं अप्पाणं हदि सद्दव्वं ॥१८॥ दुष्टाष्टकर्मरहितं अनुपमं ज्ञानविग्रह नित्यम् ।। शुद्धं जिनः कथित आत्मा भवति स्वद्रव्यम् ॥१८॥ (दुद्रुकम्मरहियं ) दुष्टाष्टकर्मरहितं दुष्टानि पापिष्ठानि यानि अष्टकर्माणि दुर्गतिसंपातहेतुत्वात् तैः रहितं वजितं ( अणोवमं णाणविग्गहं णिचं) अनुपमं उपमारहितं, ज्ञानविग्रहं ज्ञानशरीरं केवलज्ञानमयं, नित्यं शाश्वतं अवि आगे वह परद्रव्य और स्वद्रव्य कैसा होता है यह बताते हैं- गाथार्थ-आत्मस्वभाव से अतिरिक्त जो सचित्त अचित्त अथवा मिश्र द्रव्य है वह सब पर-द्रव्य है, ऐसा यथार्थ रूप से समस्त पदार्थों को जानने वाले सर्वज्ञ देवने कहा है ॥१७॥ . विशेषार्थ--आत्मस्वभाव से भिन्न सचित्त-इष्ट स्त्री आदिक, अचित्त-धन सुवर्ण वस्त्र आदिक और मिश्र-आभरण तथा वस्त्र आदि से युक्त स्त्री आदिक जो भी पदार्थ हैं वे सब परद्रव्य हैं, ऐसा आगम में सत्यरूप से समस्त पदार्थों को देखने वाले सर्वज्ञ देव ने कहा है ॥१७।। - गाथार्थ-आठ दुष्ट कर्मोंसे रहित, अनुपम, ज्ञानशरीरी, नित्य और शुद्ध जो आत्मद्रव्य है उसे जिनेन्द्र भगवान् ने स्वद्रव्य कहा है ॥१८॥ विशेषार्थ-जो दुर्गति में गिरानेके हेतु होनेसे अत्यन्त पापी कहे जानेवाले ज्ञानावरणादि कर्मोंसे रहित है, उपमा-रहित है, केवलज्ञान रूप शरीर से युक्त है, अविनश्वर है तथा कर्ममल-कलंक से रहित होनेके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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