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________________ षट्प्राभृते इति गाथा अप्रमाणं भवति यदि स्त्रीणां मुक्तिः स्यात् । परदव्वरओ बज्झइ विरओ मुच्चेइ विविहम्मेहि । एसो जिणउवएसो समासओ बन्धमोक्खस्स ॥ १३॥ ५७८ [ ६.१३ परद्रव्यरतः बध्यते विरतः मुञ्चति विविधकर्मभिः । एष जिनोपदेश: समासतः बन्धमोक्षस्य ॥१३॥ ( परदव्वरओ बज्झइ ) परद्रव्यं शरीरादिकं तत्र रतो बध्यते बन्धनं प्राप्नोति चौरवत्, यथा चौरः परद्रव्यं चोरयन् पुमान् राजलोकैर्बध्यते यो न परद्रव्यं चोरयति स न बध्यते । ( विरओ मुच्चेइ विविहकम्मेहि ) विरतः परद्रव्यपराङमुखः पुमान् मुच्यते - मुक्तो भवति विविधैर्नानाप्रकारैः कर्मभिर्ज्ञानावरणादिभि: । ( एसो जिउवएसो ) एष जिनोपदेशः । ( समासओ बंधमोक्खस्स ) समासतः संक्षेपात्, बन्धमोक्षस्य बन्धेनोपलक्षितो मोक्षो बन्धमोक्षः तस्य बन्धमोक्षस्य । अथवा बन्धश्च मोक्षश्च बन्धमोक्षं समाहारद्वन्द्वस्तस्य । दीक्षित हुआ हो तो भी आर्या के द्वारा साधु संमुख गमने करना, वन्दना, नमस्कार और विनय के द्वारा पूजनीय होता है। यदि यह गाथा अप्रमाण है तो स्त्रियों की मुक्ति हो सकती है ॥१२॥ गाथार्थ - पर - द्रव्यों में रत पुरुष नाना कर्मोंसे बन्धको प्राप्त होता है और पर-द्रव्यों से विरत पुरुष नाना कर्मों से मुक्त होता है, बन्ध और मोक्ष के विषय में जिनेन्द्र भगवान् का यह संक्षेप से उपदेश है || १३|| विशेषार्थ - जिस प्रकार पर द्रव्य को चुराने वाला चोर पुरुष राजपुरुषों के द्वारा बद्ध होता है - बाँधा जाता है और जो पर- द्रव्यको नहीं चुराता है वह बद्ध नहीं होता, उसी प्रकार शरीरादि पर द्रव्यमें लीन रहने वाला पुरुष नाना प्रकार के ज्ञानावरण आदि कर्मोंसे बन्ध को प्राप्त होता है और पर-द्रव्य से पराङमुख रहने वाला पुरुष नाना प्रकार के ज्ञानावरणादि कर्मों से मुक्त होता है, बन्ध और मोक्षके विषय में जिनेन्द्र भगवान् का यह संक्षेप से उपदेश है । प्रश्न - - यहाँ 'बन्धश्च मोक्षश्च बन्धमोक्षौ तयोः ' इस प्रकार इतरेतर योग द्वन्द्व समास करने पर द्विवचन होना चाहिये एकवचन का प्रयोग तयों हुआ ? Jain Education International उत्तर-- यहाँ इतरेतर योग न करके 'बन्धेन मोक्षः बन्धमोक्षः तस्य' इस प्रकार मध्यम पद लोपो तत्पुरुष समास करने से द्विवचन रखने की For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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