________________
-६.६] मोक्षप्रामृतम्
५६५ रात्मा वेदितव्यः । ( कम्मकलंकविमुक्को परमप्पा भण्णए देवो) कर्मकलङ्कविमुक्तो द्रव्यकर्मभावकमनोकर्मरहितः सिद्धपरमेश्वरो देवः परमात्मा भण्यते अर्हन् परमेश्वरः सामान्यकेवली च परमात्मा कथ्यते तस्य जीवन्मुक्तत्वात् । उक्तं च
आत्मन्नात्मविलोपनात्मचरितैरासीर्दुरात्मा चिरं स्वात्मा स्याः परमात्मनीनचरितरात्मीकृतरात्मनः । आत्मेत्यां परमात्मतां प्रतिपतन् प्रत्यात्मविद्यात्मकः
स्वात्मोत्थात्मसुखो निषीदवि' लसन्नध्यात्ममध्यात्मना ॥१॥ मलरहिओ कलचत्तो अणिदिओ केवलो विसुद्धप्पा। परमेट्ठी परमजिणो सिवंकरो सासओ सिद्धो॥६॥
मलरहितः कलत्यक्तः अनिन्द्रियः केवलो विशुद्धात्मा ।
परमेष्ठी परमजिनः शिवङ्करः शाश्वतः सिद्धः ॥६॥ ( मलरहिओ कलचत्तो) मलरहितः कर्ममलकलंकरहितः, कलया शरीरेण त्यक्तः कलत्यक्तः । याकारी स्त्रीकृती ह्रस्वौ क्वचित् यथा इष्टकषितं इषीकतूल
है। और जो द्रव्यकर्म भावकर्म तथा नोकम से रहित सिद्ध परमेश्वर है वे परमात्मा कहलाते हैं। अरहन्त परमेश्वर तथा सामान्य केवली भी परमात्मा कहलाते हैं, क्योंकि उनकी जीवन्मुक्त अवस्था है। कहा
भी है
___आत्मन्नात्म-आत्मन् ! तू आत्माको लुप्त करने वाले अपने आचार से चिरकाल तक दुरात्मा (दुष्ट स्वभावसे युक्त बहिरात्मा) रहा, अब आत्मस्वरूप किये हुए परमात्मा के चरित से अर्थात् परमात्मा के ध्यान से स्वात्मा ( उत्तम स्वभाव से युक्त-अन्तरात्मा ) हो जा । जिसे आत्मविद्या-आत्मज्ञान प्राप्त हो चुका है, ऐसा तू आत्मा के द्वारा प्राप्त करने योग्य परमात्म-दशाको प्राप्त होता हुआ अपनी आत्मा से ही उत्पन्न होने वाले आत्म-सुखसे सम्पन्न हो अध्यात्मकी भावनासे सुशोभित होता हुआ आत्मामें लीन हो जा ॥५॥
गावार्थ-वह परमात्मा मल रहित है, कला अर्थात् शरीर से रहित है, अतीन्द्रिय है, केवल है, विशुद्धात्मा है, परमेष्ठी है, परम जिन है, शिवकर है, शाश्वत है और सिद्ध है ॥६॥
१. निसीबसी लसन्न म।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org