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________________ -५. १५९ ] भावप्राभृतम् ५५५ मालया मुनिः शोभते इत्युपस्कारः। (जिणमयगयणे णिसायरमुणिदो ) जिनमतमाहतशासनं तदेव गगनं आकाशः पापलेपरहितत्वात् जिनमतगगनं तस्मिन् जिनमतगगने सर्वज्ञशासनाकाशे, निशाकरश्चन्द्रः निशां करोति उद्योतयंति निशाकरो मुनीन्द्रः तत्र मुनीन्द्रो दिगम्बरः निशाकरः पापान्धकारविच्छेदकत्वात् ( तारावलिपरियरिओ) तारावलिपरिकलिता नक्षत्रमालापरिवेष्टितो नक्षत्रमण्डलोपेतः । ( पुण्णिमइदुव्व पवणवहे ) पूर्णिमेन्दुरिव पूर्णिमाचन्द्रवच्छोभते, पवनगथे गगनमार्गे इति शेषः । चक्कहररामकेविसुरवरजिणगणहराइ सोक्खाई। चारणमुणिरिद्धीओ विसुद्धभावा जरा पत्ता ॥१५९॥ चक्रधररामकेशवसुरवरजिनगणधरादिसौख्यानि । चारणमन्यद्धोः विशुद्धभावा नराः प्राप्ताः ॥१५९।। (चक्कहररामकेसवसुरवरजिणगणहराइसोक्खाई) चक्रधराश्च भरतादयः सकलचक्रवर्तिनः, रामश्च बलदेवाः, केशवाश्चार्धचक्रवर्तिनः, सुरवराश्च सौधर्मेन्द्राघच्युतेन्द्रपर्यन्ता अहमिन्द्रान्ताः, जिनाश्च वृषभादिवीरान्ताः, गणधरादयश्च वृषभसेनादयः श्रीगौतमान्तास्तेषां सौख्यानि महापुराणादिशास्त्रवणितानि समूह रूपो मणियों को मालासे युक्त मुनि-रूपी चन्द्रमा सुशोभित होता है ॥१५८॥ विशेषार्थ-अट्ठाईस मूलगुण हैं, तथा दश धर्म, तीन गुप्तियाँ, अठारह हजार शीलके भेद और बाईस परोषहों को जोतना आदि उत्तरगुण हैं । इन सब गुणोंके समूह रूप मणियों की माला से अलंकृत मुनि रूपी चन्द्रमा, जिनमत-अहंन्त सर्वज्ञ देवके शासन रूपो आकाश में उस प्रकार सुशोभित होता है जिस प्रकार के निर्मल आकाश में नक्षत्रों को पंक्ति से घिरा हुआ पूर्ण चन्द्रमा सुशोभित होता है ।।१५८।। गाथार्थ-विशद्ध भावोंके धारक मनुष्य, चक्रवर्ती बलभद्र नारायण सुरेन्द्र जिनेन्द्र और गणधरादिके सुखोंको तथा चारण मुनियों को ऋद्धियों को प्राप्त हुए हैं ।।१५९॥ - विशेषार्थ-चक्ररत्न के धारक भरत आदि सकल चक्रवर्ती, राम अर्थात् बलदेव, केशव अर्थात् अर्ध चक्रवर्ती-नारायण, सुरवर अर्थात् सौधर्मेन्द्र से लेकर अच्युतेन्द्र तक अथवा अहमिन्द्र तक जिन अर्थात् ऋषभादि तीर्थकर, गणधरादि अर्थात् वृषभसेन को आदि लेकर गौतमान्त मगर इन सबके सुखोंको जिनका कि महापुराण आदि शास्त्रों में वर्णन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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