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________________ ५१४ षट्प्राभृते [५. १२२शरणं-अतिमथनसमर्था इमे पंचगुरवो जीवानां शरणं प्रतिपाद्यन्ते, चउसरणशब्देनामी, अर्हन्मंगलं अहल्लोकोत्तमाः अर्हच्छरणं । सिद्धमंगलं सिद्धलोकोत्तमा सिद्धशरणं । साधुमंगलं साधुलोकोत्तमाः साधुशरणं । साधुशब्देनाचार्योपाध्यायसर्वसाधवो लभ्यन्ते । तथा केवलिप्रणोतधर्ममंगलं धर्मलोकोत्तमाः धर्मशरणं चेति द्वादशमंत्राः सूचिताः चतुःशब्देनेति ज्ञातव्यं । एते द्वादशमंत्राः प्रणवपूर्वमायाबीजब्रह्मा तबीजाक्षरपूर्वा ललाटपट्टे गोक्षीरवर्णा लिखिताश्चिन्त्यन्ते तथा चोक्तं मंत्रद्वन्द्वे श्रवणयुगले नासिकाने ललाटे वक्त्रे नाभी शिरसि हृदये तालुनि भ्रू युगान्ते । ध्यानस्थानान्यमलभतिभिः कीर्तितान्यत्र देहे तेष्वेकस्मिन् विगतविषयं चित्तमालम्बनीयम् ॥१॥ इन तीनों लोकों में उत्तम अर्थात् उत्कृष्ट हैं । इसलिये लोकोत्तम कहलाते हैं। तथा जीवोंकी पीड़ा के नष्ट करने में समर्थ हैं इसलिये शरण कहे जाते हैं । आचार्यों ने पञ्च परमेष्ठियोंका निम्नलिखित बारह मन्त्रों में समावेश किया है १ अर्हन्मङ्गलम्, २ अर्हल्लोकोत्तमा, ३ अर्हच्छरणम्, ४ सिद्धमङ्गलम्, ५ सिद्ध-लोकोत्तमा, ६ सिद्ध-शरणम्, ७ साधु मङ्गलं, ८ साधुलोकोत्तमाः, ९ साधुशरणम्, १० केवलिप्रणीत धर्ममङ्गलं, ११ धर्म लोकोत्तमाः, १२ धर्म-शरणम् । इन बारह मन्त्रों का चत्तारि दण्डक के साथ निम्न प्रकार पाठ होता है 'चत्तारिमङ्गलं अरहंता मङ्गलं सिद्धा मङ्गलं साहू मंगलं केवलि पण्णत्तो धम्मो मंगलं । चत्तारि लोगुत्तमा अरहंता लोगुत्तमा सिद्धालोगुत्तमा साहुलोगुत्तमा केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमो । चत्तारि सरणं पवज्जामि अरहते सरणं पवन्जामि सिद्ध सरणं पवज्जामि साहुसरणं पवज्जामि केवलि पण्णत्त धम्म सरणं पवज्जामि ।' ___ इस मन्त्रों में साधु शब्द से आचार्य उपाध्याय और सर्वसाधुका ग्रहण होता है । इन मन्त्रोंको प्रणव बीज अर्थात् ॐ, माया बोज अर्थात् ह्रीं और ब्रह्मश्नुत बीज अर्थात् श्रीम् इन बीजाक्षरों के साथ गायके दूधके समान सफेद वर्ण द्वारा ललाट तट में लिख कर ध्याया जाता है । जैसा कि कहा गया है नेत्रद्वन्द्वे-निर्मल बुद्धिके धारक आचार्योंने इस शरीर में नेत्र युगल, कर्णयुगल, नासिको का अग्रभाग, ललाट, मुख, नाभि, शिर, हृदय, तालु For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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