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षट्प्राभृते [५. ११८कुशीलसंसर्गः ८, राजसेवा ९, रात्रिसंचरणं १० । ते आकम्पितादिदशालोचनापरिहतिभिर्दशभिगुणिताः चत्वारिंशत्सहस्राधिकाष्टलक्षाणि भवन्ति । ते दशभिधर्मः गुणिताश्चतुरशीतिलक्षा गुणा भवन्ति । अथ दशकायसंयमाः के ? एकेन्द्रियादिपंचेन्द्रियपर्यन्तानां जीवानां रक्षा प्राणसंयमः पंचविषः । स्पर्शनादीनां पंचानामिन्द्रियाणां प्रसरपरिहार इन्द्रियसंयमः पंचविधः । एते दशकायसंयमा ज्ञातव्याः । दशालोचन दोषा यथा
आर्कपिय अणुमाणिय जं दिळं वायरं च सुहमं च ।
छन्नं सदाउलयं बहुजणमव्वत्त तस्सेवी ॥१॥ अस्या अयमर्थः-आलोचनां कुर्वन् शरीरे कम्प उत्पद्यते भयं करोतीत्याकम्पितदोषः । अणुमाणिय-अनुमानेन दोषं कथयति यथोक्तं न कथयतीत्यनुमान
८ कुशील संसर्ग, ९ राजसेवा और १० रात्रि संचरण, ये शोलको दस विराधनाएं हैं।
चौरासी हजार भेदों में आकम्पित आदि आलोचना के दश दोषों के परिहार सम्बन्धी दश भेदोंका गुणा करनेसे आठ लाख चालीस हजार भेद होते हैं तथा इन भेदों में दश धर्मोंका गुणा करने पर चौरासी लाख भेद हो जाते हैं।
प्रश्न-दश प्रकारका कायसंयम कौन है ?
उत्तर-पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक, ये पाँच स्थावर तथा द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिर न्द्रिय संज्ञि पञ्चेन्द्रिय और असैनी पञ्चेन्द्रिय इन दश कायके जीवोंका
दश प्रकारका प्राणि-संयम और दश प्रकारका इन्द्रिय संयम ये दश कायसंयम हैं, इनके परस्पर गुणा करने पर १०० भेद हो जाते हैं।
प्रश्न-आलोचना के दश दोष कौन हैं ?
उत्तर-आकम्पित, अनुमानित, दृष्ट, बादर, सूक्ष्म, छन्न, शब्दाकुलित, बहुजन, अव्यक्त और तत्सेवो ये आलोचना के दश दोष हैं ।
इनका विवरण इस प्रकार है
आकम्पित-आलोचना करते समय शरीर में कम्पन होना अर्थात् कहीं अधिक दण्ड न दे दें इस भयसे शरीरका कांपने लग जाना आकम्पित दोष है । अथवा ऐसी दयनीय मुद्रा बनाकर आलोचना करना जिससे आचार्य अपराधी साधुको दुर्बल समझ अधिक दण्ड न दे दें। ......
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