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षट्प्राभृते
[५. ११८अशीत्याद्विशताधिकसप्तदशसहस्राणि चैतन्यसम्बन्धीनि भवन्ति विंशत्यधिकसप्तशतानि अचेतनसम्बन्धीनि भवन्ति । तत्राचेतनकृतभेदाः कथ्यन्ते-काष्ठ-पाषाण. लेप-कृताः स्त्रियो मनःकायकृतगुणिताः षट्। कृतकारितानुमतगुणिता अष्टादश । स्पर्शादिपंचगुणिता नवतिः । द्रव्यभावगुणिता अशोत्या शतं । कषायश्चतुभिगुणिता विंशत्यधिकानि सप्तशतानि । चैतन्यसम्बन्धीनि अशीत्यधिकद्विशताग्रसप्तदशसहस्राणि, तद्यथा-देवी मानुषी तिरश्ची चेति स्त्रियस्तिस्रः कृतकारितानुमतगुणिता नव भवन्ति । मनोवचनकायगुणिताः सप्तविंशतिभवन्ति । स्पर्शरसगन्धवर्णशब्दगुणिताः पंचत्रिंशदधिकं शतं । द्रव्यभावगुणिताः सप्तत्यधिकद्वेशते । आहारभयमैथुनपरिग्रहचतसृसंज्ञाभिःगुणिता अशोत्यधिक सहस्र । अनन्तानुबन्ध्यप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानसंज्वलनचतुष्कषोडशकषायगुणिता अशीत्यधिकद्विशताग्रसप्तदशसहस्राणि भवन्तीति चेतनसम्बन्धिभेदाः । ७२० + १७२८०-१८०००।
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काष्ठ, पाषाण और लेपसे निर्मित होनेके कारण स्त्रियोंके तीन भेद हैं। इन तीन प्रकारकी स्त्रियों में मनोयोग तथा काययोग का गुणा करने पर छह भेद हुए । इन छह भेदोंमें कृत, कारित और अनुमोदनाका गुणा करने पर अद्वारह भेद हुए। इन अट्ठारह भेदों में स्पर्श आदि पांचका गुणा करने पर नब्बे भेद हुए इनमें द्रव्य और भावका गुणा करने पर एकसौ अस्सी भेद हुए और इनमें चार कषायोंका गुणा करने पर सात सौ बीस भेद होते हैं।
आगे चेतन-सम्बन्धी सतरह हजार दो सौ अस्सी भेद कहते हैं
चेतन स्त्रीके देवी, मानुषी और तिरश्चीकी अपेक्षा तीन भेद हैं उनमें कृत, कारित और अनुमोदना के तीन भेदोंका गुणा करने पर नौ भेद हुए। उनमें मन, वचन, काय इन तीन योगोंका गुणा करने पर सत्ताईस भेद हुए, उनमें स्पर्श रस गन्ध वर्ण और शब्द इन पांचका गुणा करने पर एकसौ पैंतीस भेद हुए । उनमें द्रव्य और भावकी अपेक्षा दो का गुणा करने पर दो सौ सत्तर भेद हुए । उनमें आहार, भय, मैथुन और परिग्रह इन चार संज्ञाओंका गुणा करने पर एक हजार अस्सी भेद हुए। उनमें अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान और संज्वलन सम्बन्धी सोलह कषायोंका गुणा करने पर सत्रह हजार दो सौ अस्सी भेद होते हैं । इस तरह अचेतन स्त्रीके ७२० और चेतन स्त्रोके १७२८०, दोनोंके मिलाकर १८००० भेद होते हैं।
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