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________________ ४९२ षट्नामृते - [५. ११२-. (बाहिरसयणत्तावणतरुमूलाईणि उत्तरगुणाणि ) बहिःशयनातपनतरुमूलावान् उत्तरगुणान् पालयेति सम्बन्धः । शीतकालेऽनावृतस्थाने स्थिति कुरु । उष्णकाले आतपनयोगं घर । वर्षाकाले तरुमूले तिष्ठ । वृक्षपर्णोपरि पतित्वा यज्जल यत्युपरि पतति तस्य प्रासुकत्वाद्विराधनाऽप्कायिकानां जीवानां न भवति द्विगुणवर्षाकष्टं च भवतीति कारणात् वर्षाकाले तरुमूलस्थितेरुपयोगः, अन्यथा कातरत्वप्रसक्तेः । एते त्रयोऽपि योगा उत्तरगुणाः कथ्यन्ते । ( पालहि भावविसुद्धो ) ( पालय भावविशुद्धः ) तत्वभावनानिर्मलमनाः सन्निति भावः । ( पूयालाहं न ईहतो ) पूजालाभख्यात्यादिकमनीहमानोऽनिच्छन्निति शेषः ।। भावहि पढमं तच्चं विदियं तदियं चउत्थपंचमयं । तियरणसुद्धो अप्पं अणाइणिहणं तिवग्गहरं ॥११२॥ भावय प्रथमं तत्वं द्वितीयं तृतीयं चतुर्थपञ्चमकम् । त्रिकरणशुद्धः आत्मानं अनादिनिधनं त्रिवर्गहरम् ।।११२।। ( भावहि पढमं तच्चं ) भावय हे जीव | त्वं श्रद्धेहि, किं तत् ? प्रथमं तत्वं जीवतत्वं । ( विदियं ) द्वितीयं तत्वमजोवसंज्ञं पुद्गलधर्माधर्मकालाकाशलक्षणं । को इच्छा न कर, बाह्यशयन आतापन योग ओर वृक्ष मूल निवास आदि गुणोंका पालन कर ॥ १११ ॥ विशेषार्थ-शीत कालमें खुले स्थान पर शयन करना अभ्रवास योग है। उष्ण कालमें पर्वतकी शिखर आदि संतप्त स्थानों पर बैठकर ध्यान करना आतापन योग है और वर्षाकाल में वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान करना वर्षायोग है । वृक्षके नीचे बैठने पर मुनिके शरीर पर जो पानीको बूदें पड़ती हैं वे प्रासुक होती हैं अतः उससे जल-कायिक जीवोंका विघात नहीं होता तथा थोड़ा थोड़ा पानी पड़नेसे वर्षाका कष्ट दूना होता है इसलिये वर्षाकाल में वृक्षके नीचे बैठकर वर्षायोग करने की विधि है अन्यथा मुनिके कातर-पनेका प्रसङ्ग आता है। ये तीनों योग उत्तर गुण कहलाते हैं। हे मुने ! पूजा लाभ-लौकिक मान प्रतिष्ठा आदिको इच्छा न रखता हुआ तू विशुद्ध भावसे इन उत्तर गुणोंका पालन कर ॥१११॥ गाथार्थ-हे जीव ! तू प्रथम-तत्व-जीव, द्वितीयतत्व-अजीव, तृतीयसत्व-आस्रव चतुर्थ तत्व-बन्ध, पञ्चमतत्व-संवर, षष्ठ तत्व-निर्जरा और सप्तमतत्व-मोक्ष इन सात तत्वोंको श्रद्धा कर तथा मन वचन कायसे शुद्ध होता हुआ, धर्म अर्थ एवं काम रूप त्रिवर्ग को हरने वाले-मोक्ष स्वरूप अनादि निधन आत्मा का ध्यान कर ॥११॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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