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________________ षट्प्राभृते [५. ९५स्थानं ( ६ ) अप्रमत्तसंयतगुणस्थानं ( ७ ) अपूर्वकदणगुणस्थानं ( ८) अनिवृत्ति एकदेशचारित्र प्रकट होजाता है उसे देशविरत कहते हैं। यह त्रस हिंसा से विरत होजाता है इसलिये विरत कहलाता है और स्थावर हिंसा से विरत नहीं होता है इसलिये अविरत कहलाता है । इसके अप्रत्याख्याना- . वरण कषाय के क्षयोपशम और प्रत्याख्यानावरण कषाय के उदय में तारतम्य होनेसे दर्शनिक आदि ग्यारह अवान्तर भेद होते हैं। ६. प्रमत्तविरत-प्रत्याख्यानावरण कषायका उदयाभावी क्षय और सदवस्था रूप उपशम तथा संज्वलन का तीव्र उदय रहने पर जिसको आत्मा में प्रमाद सहित संयम प्रकट होता है, उसे प्रमत्तसंयत कहते हैं। इस गुणस्थान का धारक नग्न-मुद्रा में रहता है। यद्यपि यह हिंसादि पापोंका सर्व-देश त्याग कर चुकता है तथापि संज्वलन चतुष्क का तीव्र उदय साथ में रहने से इसके चार विकथा, चार कषाय, पाँच इन्द्रिय, निद्रा तथा स्नेह इन पन्द्रह प्रमादों से इसका आचरण चित्रल-दूषित बना रहता है। ७. अप्रमत्तविरत-संज्वलनके तीव्र उदय की अवस्था निकल जानेके कारण जिसके आत्मा से ऊपर कहा हआ पन्द्रह प्रकार का प्रमाद नष्ट हो जाता है, उसे अप्रमत्त-विरत कहते हैं। इसके स्वस्थान और सातिशय को अपेक्षा दो भेद हैं। जो छठवें और सातवें गुणस्थान में हो झूलता रहता है वह स्वस्थान कहलाता है और जो उपरितन गुणस्थानों में चढ़ने के लिये अधःकरण रूप परिणाम कर रहा है वह सातिशय अप्रमत्त विरत कहलाता है। जिसमें सम-समय अथवा भिन्न समयवर्ती जीवों के परिणाम सदृश तथा विसदृश दोनों प्रकार के होते हैं उसे अधःकरण कहते हैं। ८. अपूर्वकरण-जहाँ प्रत्येक समय में अपूर्व-अपूर्व नवीन-नवीन हो परिणाम होते हैं उसे अपूर्वकरण कहते हैं। इसमें समसमयवर्ती जीवोंके परिणाम सदृश तथा विसदृश दोनों प्रकार के होते हैं और भिन्न समयवर्ती जीवोंके परिणाम विसदृश ही होते हैं । ९. अनिवृत्तिकरण-जहाँ सम-समय-वर्ती जीवोंके परिणाम सदृश हो और भिन्न समय-वर्ती-जीवोंके परिणाम विसदृश ही होते हैं उसे अनिवृत्तिकरण कहते हैं। यह अपूर्वकरणादि परिणाम उत्तरोत्तर विशुद्धताको लिये हुए होते हैं तथा संज्वलन चतुष्क के उदय को मन्दता में क्रमसे प्रकट होते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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