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गाथा पृष्ठ मोक्षमार्गी कौन है इसका वर्णन
८०-८८ ६५५-६६२ धन्य तथा कृतकृत्य कौन हैं ? सम्यक्त्व का स्वरूप
९०-९१ ६६३-६६६ मिथ्यादृष्टि कौन है ? तथा मिथ्यात्व का फल ९२-९७ ६६७-६७१ बाह्य कर्म करने वाले साधु सिद्धि सुख नहीं पाते
९८-१०० ६७२-६७६ सच्चा साधु कैसा होता है ?
१०१-१०२ ६७२-६७६ आत्म तत्त्व क्या है ?
१०३ . ६७७ पंचपरमेष्ठी रूप आत्मा ही शरण है १०४-१०६ ६७८-६८०
लिङ्ग पाहु मङ्गलाचरण और प्रतिज्ञा वाक्य
१ ६८३ धर्म से लिङ्ग होता है, लिङ्ग मात्र से धर्म नहीं होता
- २ , ६८३ लिङ्ग धारण कर लिंग भाव की हँसी करने का फल
६८३ श्रमणाभासों का वर्णन
४-२२ ६८४-६९२
शोल पाहर मंगलाचरण और प्रतिज्ञा वाक्य
६९३ शील और ज्ञान का विरोध नहीं है
६९३ ज्ञान की प्राप्ति कठिनाई से होती है विषयासक्त जीव ज्ञान को नहीं जानता चारित्र हीन ज्ञान, दर्शन रहित लिङ्ग और संयम रहित तप की निरर्थकता चारित्र से शुद्ध ज्ञान आदि की महिमा विषयी जीव चतुर्गति में भ्रमण करते हैं विषय से विरक्त ज्ञानी जीव चतुर्गति भ्रमण को छेदते हैं ज्ञान रूपी जल से जीव शुद्ध होता है ज्ञान से गर्वित जीव विषयों में रक्त होते हैं इसमें ज्ञान का अपराध नहीं है
६९६ निर्वाण की प्राप्ति किनको होती है
११-१२ ६९७
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