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भावप्राभृतम्
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अस्यायमर्थः — वज्र ऋषभनाराचसंहननं, वज्रनाराच संहननं नाराचसंहननं संहननत्रयमुत्तमं संहनन मोक्षादिकारणत्वात् । प्रथमं संहननं मोक्ष्यस्य हेतुः । घ्यानस्य हेतुस्त्रितयमपि भवति । अर्धनाराचस्य की लिकाया असंप्राप्तास्पाटिकायाश्च संहननत्रयस्यान्तर्मुहूर्तकालं यावच्चिन्तानि रोघधारणायामसमर्थत्वात् । गमनभोजनादिक्रियाविशेषेष्वनियमेन प्रवर्तमानस्यात्मन एकस्याः क्रियायाः कर्तृ वेनावस्थानं निरोधः - क्रियान्तरव्यवधानाभावेन एकक्रियायाः सातत्येन प्रवृत्तिनिरोध इत्यर्थः । एका एकार्थे एकस्मिन्नग्र प्रधाने वा वस्तुनि चिन्तानिरोधः -- एकस्मिन् द्रव्ये पर्याये तदुभयात्मके स्थूले सूक्ष्मे वा चिन्तानिरोध इत्यर्थः । अथवा सद्ध्यान अग्र मुखं, एकमग्र यस्य स एकाग्रः स चासो चिन्तानिरोधश्चैकाग्रचिन्तानिरोधः । एकस्मिन्नर्थे वर्तमानचिन्तानिरोधः एकमुखः सद्ध्यानं, अनेकत्राक्षसूत्रादी अनेकमुखः
आगे ध्यान नामक बारहवें तपका वर्णन किया जाता है। उसके लिये उमास्वामी महाराज ने इस सूत्र की रचना की है -- 'उत्तम संहननस्यैकाग्रचिन्तानिरोधो ध्यानमान्तमुहूर्तात् ' - - इसका अर्थ है--उत्तम संहनन वाले जीवका किसी एक पदार्थ में अन्तर्मुहूर्त के लिये चिन्ता का रुक जाना ध्यान कहलाता है। वज्रर्षभ-नाराच संहनन, वज्रनाराच संहनन और नाराच संहनन, ये तीन संहनन उत्तम संहनन हैं क्योंकि ये मोक्ष आदि की प्राप्ति के कारण हैं । इनमें से प्रथम संहनन मोक्षका कारण है किन्तु ध्यान के कारण तीनों संहनन हैं । अर्ध नाराच, कीलिका और असंप्राप्तासृपाटिका इन तीन संहननों में अन्तर्मुहूर्त तक चिन्ता के निरोध करनेकी सामर्थ्य नहीं है । गमन, भोजन आदि क्रिया विशेषोविभिन्न विभिन्न क्रियाओं में अनियम पूर्वक प्रवृत्ति करने वाले आत्मा का किसी एक क्रिया का कर्ता रखना निरोध कहलाता है । अर्थात् बीच में दूसरी क्रिया का व्यवधान न कर एक क्रिया का ही निरन्तर प्रवृत्ति करना निरोध है । एकाग्र अर्थात् एक पदार्थ में अथवा किसी एक प्रधान वस्तु में चिन्ताका निरोध करना -- एक द्रव्य, एक पर्याय अथवा दोनों रूप स्थूल और सूक्ष्म पदार्थ में चिन्ता का निरोध करना एकाग्र चिन्ता निरोध कहलाता है । अथवा ध्यान सद् रूप है, अग्र का अर्थ मुख है । एक है अग्र जिसमें उसे एकाग्र कहते हैं और जो एकाग्र है वहीं चिन्ता निरोध है, इस तरह एकाग्र और चिन्ता निरोधका विशेष्य विशेषण अथवा कर्मधारय समास करना चाहिये । इस पक्ष में एकाग्र चिन्ता निरोध का अर्थ एक मुख चिन्ता निरोध होता है । एक पदार्थ में वर्तमान चिन्ताका निरोष हो जाना एक मुख चिन्ता -निरोध है । यही सद्ध्यान अर्थात् समीचीन
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