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________________ -५. ७७ ] भावप्राभृतम् निवृत्तिनिष्कांक्षित्वं (२) शरीरादी शुचीति मिथ्यासंकल्परहितत्वं निर्विचिकित्सता, मुनीनां रत्नत्रयमंडितशरीरमलदर्शनादौ निशुकत्वं तत्र समाढोक्य वैयावृत्यविधानं वाविचिकित्सता (३) परतत्वेषु मोहोज्झकत्वममूढदृष्टित्वं (४) उत्तमक्षमादिभिरात्मनो धर्मवृद्धिकरणं संघदोषाच्छादनं चोपवृंहणमुपगूहनं (५) कषायविषयादिभिर्धमविध्वंस कारणेषु सत्स्वपि धर्मप्रच्यवन रक्षणं स्थितिकरणं ( ६ ) जिनशासने सदानुरागता वात्सल्यं (७) सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रतपोभिरात्मप्रकाशनं शासनोद्योतकरणं वा प्रभावना ( ८ ) एतैरष्टभिगुणैर्युक्तत्वं चर्मजलतैल भय, आत्मरक्षा के उपायभूत दुर्गं आदिके अभाव में होने वाला अगुप्ति भय. रक्षकों के अभाव में होनेवाला अत्राण अथवा अरक्षण भय और विद्युत्पात आदि आकस्मिक भय इन सात भयोंका अभाव होना निःशङ्कित अंग है अथवा मोक्षमार्ग निर्ग्रन्थ लक्षण है- मोक्ष दिगम्बर मुद्रासे ही साध्य है ऐसा जिनेन्द्र भगवान् का मत है सो वह यथाथ है, इसप्रकार का अटल श्रद्धान होना सो निःशङ्कित अंग है । २. नि:कांक्षित अङ्ग - इस लोक और परलोक सम्बन्धी भोगोपभोग की आकांक्षा का अभाव होना निःकांक्षित अंग है । ३ निर्विचिकित्सित अङ्ग - शरीरादि में 'यह पवित्र है' इस प्रकार का मिथ्यासंकल्प न होना' निर्विचिकित्सित अंग है । अथवा मुनियों के रत्नत्रय से सुशोभित शरीर सम्बन्धी मल आदिके दिखने पर ग्लानि रहित अवस्था को प्राप्त हो वैयावृत्य करना निर्विचिकित्सित अंग है । ४ अमूढदृष्टि अङ्ग - मिथ्या दृष्टियोंके कल्पित तत्वोंमें मोह छोड़ना अमूढदृष्टि अंग है । ४११ ५ उपवहण अथवा उपगूहन अङ्ग - उत्तम क्षमा आदिके द्वारा अपने धर्मकी वृद्धि करना अथवा संघके दोषोंको छिपाना उपबृंहण अथवा उपगूहन अंग है । ६. स्थितीकरण अङ्ग - कषाय तथा विषय आदि द्वारा धर्म-घातका कारण उपस्थित होनेपर भी किसी को धर्मंघात से बचाना स्थितीकरण अंग है । ७ वात्सल्य अंग -- जिनशासन में सदा अनुराग दिखाना वात्सल्य अंग है । ८ प्रभावना अंग - - सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान सम्यक्चारित्र और सम्यक्तपके द्वारा आत्माका प्रकाश करना अथवा जिन शासन का उद्योत फैलाना सो प्रभावना अंग है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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