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________________ -५. ६९ ] भावप्रामृतम् ३९७ स्वर्गमोक्षकायरहितेन वृथेत्यभिप्रायः । कथंभूतेन नाग्न्येन पापमलिनेन पापवन्मलिनेन कश्मलिना । अथवा पापेति पृथक्पदं तेनायमर्थः रे पाप ! पापमूर्ते दिगम्बरवेषाजीवक ! मलिनेन अतिचारानाचारातिक्रमव्यतिक्रमसहितेन नाग्न्येन कि ? न किमपि । तथा चोक्तं समासोक्तिना गुणभद्रेण भगवता - 'हे चन्द्रमः ! किमिति लाञ्छनवानभूस्त्वं, तद्वान् भवेः किमिति तन्मय एव नाभूः । कि ज्योत्स्नया मलमलं तव घोषयन्त्या स्वर्भानुवन्ननु तथा सति नासि लक्ष्यः ॥ १ ॥ कथंभूतेन तव नाग्न्येन, (पेसुण्णहासमच्छरमायाबहुलेण सवणेण ) पैशून्य -- हास्यमत्सरमायाबहुलेन । पैशून्यं परदोषग्रहणं । उक्तं च से नहीं हो सकती है । तेरा यह नाग्न्य वेष पाप मलिन है अर्थात् पापके समान मलिन है अथवा पाप यह स्वतन्त्र सम्बोधन पद है इसलिये ऐसा भो अर्थ हो सकता है कि अरे पांप ! अरे पाप-मूर्ति ! तेरा यह नाग्न्यपद अतिचार अनाचार अतिक्रम और व्यतिक्रमसे सहित होनेके कारण मलिन है । इससे तुझे क्या प्राप्त होगा ? अर्थात् कुछ भी नहीं । जैसा कि समासोक्ति अन्योक्तिके द्वारा गुणभद्राचार्य ने कहा है हे चन्द्रमः—हे चन्द्र ! तू लाञ्छन- कलङ्क से युक्त क्यों हुआ ? यदि तुझे कलङ्क से युक्त ही होना था तो सर्वथा कलङ्कसे तन्मय क्यों नहीं हो गया ? तेरी उस मलिनता को अत्यन्त प्रगट करने वाली चांदनी से तुझे क्या लाभ है ? यदि तू सर्वथा कलङ्क से तन्मय हुआ होता तो वैसी. अवस्था में राहुके समान दृष्टिगोचर नहीं होता जिस प्रकार उज्ज्वल चन्द्रमा में छोटासा कलङ्क स्पष्ट दिखलाई देता है, उसी प्रकार मुनिपदमें थोडासा दोष भी स्पष्ट दिखाई देता है अतः मुनिपद धारण कर सदा निर्दोष प्रवृत्ति ही करना चाहिये । । जीव ! तेरा यह नाग्न्य पद पैशुन्य, हास्य, मात्सर्य और मायासे परिपूर्ण है पेशुन्यका अर्थ पर दोष-ग्रहण है। दूसरेके दोषों की ओर दृष्टि रखना बहुत बुरा है और दूसरे के दोषोंको न कहना उत्तम बात है । कहा भी है १. आत्मानुशासने । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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