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________________ ३७८ षट्प्राभृते [ ५.५३ ( तुसमासं घोसंतो ) तुषमाषशब्दं घोषयन् पुनः पुनरुच्चारयन् मा विस्मृति यासीदिति कारणात् । ( भावविसुद्धो ) भावविशुद्ध: । ( महाणुभावो य ) महानुभावश्च महाप्रभावयुक्तश्च । ( णामेण य सिवभूई ) नाम्ना च शिवभूतिः चकारादर्थेन च शिवभूतिः शिवानां सिद्धानां भुतिरंश्वयं अनन्तचतुष्टयलक्षणं त्रैलोक्यनायकत्वं यस्य स भवति शिवभूतिः । (केवलणाणी फुड जाओ) केवलज्ञानी केवलज्ञानवान् लोकप्रकाशकपंचमज्ञानवान् स्फुटं शक्रादिदेवैः प्रकटीकृतघातिक्षयजातिशयदशकः सर्वप्रसिद्धः संजात इति । अस्य कथा यथा— कश्चिच्छिवभूतिनामा - सन्नभव्यजीवः परमवैराग्यवान् कस्यचिद्गुरोः पादमूले दीक्षां गृहीत्वा महातपश्चरणं करोति षट् प्रवचनमात्रामात्रं जानाति परं वैदुष्यं किमपि तस्य नास्ति । उच्चारण करते हुए महा प्रभाव के धारक केवल ज्ञानी हो गये, यह सर्व प्रकट है ॥ ५३ ॥ विशेषार्थ - भूल न जाऊ इस भावना से तुषमाष शब्द का बार बार उच्चारण करते, भाव से विशुद्ध और महा प्रभाव से युक्त शिवभूति नामक मुनि केवल ज्ञानी हो गये लोकालोक को प्रकाशित करने वाले पंचम ज्ञान से युक्त हो गये, यह सर्व प्रकट है । इन्द्रादिदेवोंने घातिया कर्मों के क्षयसे होने वाले उनके दश अतिशय प्रकट किये । इस तरह वे सर्व प्रसिद्ध हो गये । गाथा में णामेण य ( नाम्ना च ) यहाँ नाम के साथ च शब्दका भी प्रयोग हुआ है उससे यह सिद्ध होता है कि वे मुनि नामसे ही शिवभूति नहीं किन्तु अर्थ से भी शिवभूति थे। शिव अर्थात् सिद्धों की भूति अर्थात् अनन्त चतुष्टय रूप अथवा त्रैलोक्यांधिपति रूप ऐश्वर्यं जिनके पास है वे शिवभूति कहलाते थे। यह शिवभूति शब्दकी सार्थकता है। इनकी कथा इस प्रकार है शिवभूति मुनि की कथा कोई एक शिवभूति नाम के अत्यन्त निकट - भव्य जीव थे । परम वैराग्य से युक्त होकर उन्होंने किसी गुरुके पादमूल में दीक्षा ले ली और घोर तपश्चरण करने लगे । वे शास्त्र के सिर्फ 'तुषमाष भिन्न' इन छह अक्षरोंको जानते थे । इससे अधिक कुछ भी पाण्डित्य उनमें नहीं था । वे आत्माको शरीर तथा कर्मोंके समूहसे भिन्न जानते थे । उन्हें आगमका वह वाक्य नहीं आता था, मात्र गुरुके द्वारा कहे हुए इस दृष्टान्त को कि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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