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________________ ३४८ षट्प्राभृते [५.५० दिगम्बरेषु भक्त्यातिमुख्योऽसि येन भार्यामपि तेभ्यो दातुमिच्छसि । ततो रुष्टेन राज्ञा मुनयो यंत्रे निष्पीलिताः । ते तमुपसगं प्राप्य परमसमाधिना सिद्धि गताः । पश्चात्तन्नगरं बाहूर्नाम मुनिरागतः । स लोकैर्वारितः । अत्र नगरे राजा दुष्टो वर्तते तेन पंचशतमुनयो यन्त्रे पीडिता भवन्तमपि तथा करिष्यति । तद्वचनेन बाहू रुष्टः । तेजोऽशुभसमुद्घातेन राज्ञा मंत्रिणा च सह सर्व नगरं भस्मीचकार । स्वयमपि मृतः । रौरवे नरके पतितं राजानं मंत्रिणं चान्वेष्टुमिव तत्र गतः । को नाम रौरवो नरक इति चेत् ? सप्तमे नरके पंच विलानि वर्तन्ते तेषु पूर्वदिशि रौरवः । दक्षिणेऽतिरौरवः । पश्चिमेऽसिपत्रः । उत्तरे कूटशाल्मलिः । मध्ये कुंभीपाक इति । 'अवरोत्ति दव्वसवणो दंसणवरणाणचरणपब्भट्ठो । दीवायणुत्ति णामो अनंतसंसारिओ जाओ ॥ ५० ॥ अपर इति द्रव्यश्रमणो दर्शनवरज्ञानचरणप्रभ्रष्टः | द्वीपायन इति नामा अनन्तसंसारिको जातः ||५०|| इस घटना से रुष्ट हुए राजा ने मत्र मुनियों को घानी में पिलवा दिया । वे सब मुनि उस भारी उपसर्ग को प्राप्त कर उत्कृष्ट समाधि से सिद्धि को प्राप्त हुए | पश्चात् एक बाहु नामक मुनि उस नगर में आये । लोगों ने उसे रोका भो कि इस नगर में राजा दुष्ट है उसने पाँच सौ मुनियोंको घानी में पिलवा दिया है आपको भी वैसा ही करेगा । उन लोगोंके वचन सुन कर बाहु मुनि रुष्ट हो गये जिससे उन्होंने अशुभ तैजस समुद्घात के द्वारा राजा और मन्त्री सहित समस्त नगर को भस्म कर डाला और स्वयं भी मर गया । मरकर वह रौरव नामक नरक में जा पड़ा मानों उस नरक में पड़े हुए राजा और मन्त्री को खोजनेके लिये ही वह वहाँ गया था । प्रश्न - रौरव नामका नरक कौन है ? उत्तर - सातवें नरक में पाँच बिल हैं उनमें से पूर्व दिशामें रौख, दक्षिण दिशा में अति रौरव, पश्चिम दिशामें असिपत्र, उत्तर दिशा में 'कूट शात्मलि और बीच में कुम्भी पाक नामका बिल है ॥ ४९ ॥ गाथार्थ– द्वीपायन नामका एक दूसरा साधु भी द्रव्य श्रमण हुआ है जो कि सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र से भ्रष्ट होकर अनन्त संसारी हुआ है ||५०|| १. अवरोवि क० । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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