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________________ -५. ४० ] भावप्राभृतम् दियसंगट्टियमसणं आहारियं मायभुत्तमण्णंते । छद्दिखरिसाण मज्झे जठरे वसिओसि जणणीए ॥ ४०॥ द्विजसङ्गस्थित मशनमाहृत्य मातृभुक्तमन्नान्ते । छदिखरिसयोमध्ये जठरे उषितोषि जनन्याः ॥ ४० ॥ हे जीव ! त्वं जनन्या मातु: । ( जठरे ) उदरे ( वसिओसि ) उषितोऽसि निवासं चकर्थं । कथंभूते जठरे, ( छद्दिखरिसाणमज्झे ) छर्दिश्च वान्तमन्नं, खरि - सश्च अपक्वं दर्दर मलं रुधिरलिप्तं तेषां छद्दिखरिसाणं तयोः छर्दिखरिसयो मध्ये मध्यविशिष्टे । अथवा जठरे उषितोऽसि कुत्रोषितोऽसि छर्दिखरिसयोर्मध्ये त्वमुषितोऽसि । किं कृत्वापूर्व, ( असणं आहारियं ) अशनं भोजनं आहृत्य आहार कृत्वा । कथंभूतमशनं, ( दियसंगट्टियं ) द्विजानां दन्तानां अस्थ्यङ्कुराणां संगे स्थितं चर्वणवेलायां मातृमुखे दन्तानां समीपे स्थितं अस्थिभिः स्पृष्टं उच्छि ष्टीकृतं । क्व उषितोऽसि ( मायभुत्तमण्णंते ) यन्मात्रा भुक्तं तस्यान्नस्यान्ते मध्ये उषितोऽसि । अथवा मात्रन्नं भुक्तं भुक्तं तेत्वया । तथा चोक्तं " 1 २९३ गार्थ हे जीव ! तू माताके उदरमें उसके द्वारा खाये हुए अन्न मध्य तथा वमन और अपक्व मलके बीच निवास किया है और माताके द्वारा खाये तथा उसके दांतोंके संगसे दले हुए भोजन को ग्रहण किया ॥ ४० ॥ विशेषार्थ - हे जीव ! भाव - लिङ्गके बिना गर्भवासके दुःख उठाते हुए तूने माता के उदरमें निवास किया है वह भी वमन तथा आमाशय अथवा माता के द्वारा खाये हुए अन्नके मध्य निवास किया है और चबाते समय माता के दाँतों के संग में स्थित अर्थात् दान्तोंसे छूकर जूठे हुए आहारको ग्रहण किया है । अथवा 'मायन्नं भुत्तं ते ' ऐसा भी पाठ है उसका अर्थ होता है कि इस जीवने माताके द्वारा खाया हुआ तथा उसके दाँतोंसे चर्वित जूठा अन्न ही खाया है। जैसा कि कहा गया है प्राणी ! तूने कर्मो के अधीन हो चिरकाल तक माताके उदरमें स्थित मलके मध्य निवास किया है । वहाँ भूख प्यास से पीड़ित होकर बड़ी तृष्णासे तूने मुख विवर में भीतर पड़ते हुए अन्नकी इच्छा की है। गर्भाशय में सिकुड़े रहने के कारण तू निश्चेष्ट रहा है तथा कृमि - कुलके साथ सूने निवास किया है। इस तरह जन्म के समय जो क्लेश उठाना पड़ता है उससे भयभीत होकर ही तू जन्मके कारणभूत मरणसे डरता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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