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________________ षट्नाभूते [५.३९पित्तंतमत्तफेफसकालिज्जयरहिरखरिस किमिजाले।। उयरे वसिओसि चिरं नवदसमासेहिं पत्तेहिं ॥३९॥ पित्तात्रन्मूत्रफेफसयकृद्रुधिरखरिसकृमिजाले । उदरे वसितोसि चिरं नवदशमासैः पूर्णैः ॥ ३९ ॥ .. (पित्तं ) च मायुः । अत्राणि च परीतंति । ( मूत्रं ) च प्रनावः । (फेफसश्च ) प्लीहा । ( कालिज्जय ) यकृत् “उदर्यो जलाधारो हृदयस्य दक्षिणे यकृत् कालखण्डं क्लोम वामे प्लीहा 'पुष्पसश्चेति" वैद्याः । वरहल इति देश्यां । ( रुहिर ) रुधिरं च । ( खरिस ) खरिसश्च, अपक्वविटमिश्ररुधिरश्लेष्मा खरिसः कथ्यते । खउरिय इति देश्यात् । ( किमि ) कृमयश्च द्वीन्द्रिया जोवास्तेषां (जालं ) समूहो यत्रोदरे तत् पित्तान्त्रमूत्रपुष्पसकालियकरुधिर खरिसयकृमिजालं तस्मिन् । ( उयरे वसिओसि चिरं ) उदरे कुक्षिमध्ये उषितोऽसि निवासं कृतवानसि त्वं चिरं दीर्घकालं, अनन्तगर्भग्रहणापेक्षया चिरमिति विशेषणं । ( नवदसमासेहिं पत्तेहिं ) नवभिर्दशभिर्वा मासः प्राप्तैः परिपूर्णतः तन्मध्ये तदुपरि च कियान् कालो लभ्यते प्राप्तशब्देनेति । गाथार्य-पित्त, आंत, मूत्र, प्लीहा, यकृत्, रुधिर, खरिस और कृमिके समूहसे युक्त माताके उदर में तूने पूरे नौ दस मास चिरकाल तक निवास किया है ॥ ३९ ॥ विशेषार्थ-पित्त, आँत और मूत्रका अर्थ प्रसिद्ध है । फेफस प्लोहाको कहते हैं। यकृत् लीवर को कहते हैं यह पेटमें जलका आधार है तथा हृदयके दाहिनी ओर होता है, इसे यकृत, कालखण्ड अथवा क्लोम कहते हैं । हृदय के बांई ओर जो जलाधार है उसे प्लोहा अथवा पुष्पस कहते हैं, ऐसा वैद्योंका कहना है। देशी शब्दोंमें उसे 'वरहल' कहते हैं ( कहीं कहीं तिल्ली या वाउट भी कहते हैं ) अपक्व मलसे मिला हुआ रुधिर और कफ का जो समूह है उसे खरिस कहते हैं। देशी शब्दोंमें इसे 'खउरिय' कहते हैं ( कहीं कहीं आंव भी कहते हैं ) सूक्ष्म लटके आकार दो इन्द्रिय धोवोंको कृमि कहते हैं। इन सबसे भरे हुए माताके पेटमें इस जोवने चिरकाल तक निवास किया है अर्थात् अनन्तवार गर्भ धारण कर नौ नौ दश दश मास तक माताके गर्भमें निवास किया है इसलिये हे मुनि ! यदि गर्भवासके इन दुःखोंसे बचना चाहता है तो भावलिङ्ग को धारण · कर ॥ ३९॥ १. पुषस् क० । दुष्प० ख०। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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