________________
२२३
-४.५१]
बोषप्रामृतम् (णिक्कलुसा ) निष्कलुषा निष्पापा। (णिन्भय ) निर्भया सप्तभयरहिता । (णिरासभावा ) निराशभावा आशारहितस्वभावा । ( पव्वज्जा एरिसा भणिया) प्रव्रज्या ईदृशी भणिता श्रीबृषभनाथेनेति शेषः ।
जहजायख्वसरिसा अवलंबियभुअ णिराउहा संता। परकियणिलयणिवासा पव्वज्जा एरिसा भणिया ॥५१॥ यथाजातरूपसदृशा अवलम्बितभुजा निरायुधा शान्ता ।
परकृतनिलयनिवासा प्रव्रज्या ईदृशी भणिता॥ ( जहजायरूवसरिसा ) यथाजातरूपसदृशा नग्नरूपा इत्यर्थः। ( अवलंबियभुअ ) अवलम्बितभुजा प्रायेण कायोत्सर्गस्थिता पद्मासनादिस्थिता वा । पद्मासनं कि ?
'संन्यस्ताभ्यामधोऽह्निभ्यामूर्वोरुपरि युक्तितः । भवेच्च समगुल्फाम्यां पद्मवीरसुखासनं ॥१॥
जिनदीक्षा निष्कलुष है-पाप से रहित है। निर्भय है-ऐहलौकिक, पारलौकिक, वेदना, मरण, अत्राण, अगुप्ति और आकस्मिक इन सात भयों से रहित है। और निराशभाव-आशारहित स्वभावसे युक्त है। इस प्रकार भगवान् वृषभ नाथ ने जिन दीक्षाका स्वरूप कहा है ॥५०॥ ' जहजाय-गाथार्थ-जो तत्काल उत्पन्न हुए बालक के समान नग्न सहित रूपसे है, जिसमें भुजाएँ नीचे की ओर लटकी रहती हैं, जो शस्त्र से रहित है अथवा प्रासूक प्रदेशों पर जिसमें गमन किया जाता है, जो शान्त है तथा दूसरे के द्वारा बनाये हुए उपाश्रय में जिसमें निवास किया जाता है, वह जिनदीक्षा कही गई है ॥५१॥
विशेषार्थ-जिस प्रकार तत्काल का उत्पन्न हुआ बालक निर्विकार और नग्न रहता है उसी प्रकार जिन दोक्षामें निर्विकार नग्न रूप धारण किया जाता है। जिनदीक्षामें भुजाएँ नीचे को ओर लटकी रहती हैं अर्थात् ध्यानके लिये प्रायः कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़ा हुआ जाता है और पपासन आदि आसनों से भी बैठा जाता है। ..
प्रश्न-पपासन क्या है ? उत्तर-संन्यस्ताभ्यां पैरोंको जांघोंके नीचे रखने पर पद्मासन, जाँघों
१. पक्षस्तिलकाम्यां सोमदेवस्य ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
.
www.jainelibrary.org