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________________ २१५ बोषप्रामृतम् दीनस्य श्रावकोपि सन् यो दीनं भाषते । सूतिकायाः-या बालकानां जननं कारयति । अन्यत्सुगमम् । 'कोलिको मालिकश्चैव कुम्भकारस्तिलंतुदः । नापितश्चेति विज्ञेयाः पञ्चते पञ्चकारवः ॥३॥ रजकस्तभकश्चैव अयःसुवर्णकारकः । दषत्कारादयश्चेति कारवो बहवः स्मृताः ॥ ४॥ क्रियते भोजनं गेहे यतिना मोक्तुमिच्छुना । एवमादिकमप्यन्यच्चिन्तनीयं स्वचेतसा ॥५॥ वरं स्वहस्तेन कृतः पाको नान्यत्र दुर्दशाम् । मन्दिरे भोजनं यस्मात् सर्वसावद्यसंगमः ॥ ६ ॥ णिग्गंथा णिस्संगा णिम्माणासा अराय णिहोसा। णिम्मम जिरहंकारा पव्वज्जा एरिसा भणिया ॥४९॥ निर्ग्रन्था निस्सङ्गा निर्मानाशा अरागा निर्दोषा । निर्ममा निरहङ्कारा प्रव्रज्या ईदृशी भणिता ॥४९॥ जो मदिरा बेचता है, और मद्यपायीसंसर्गी-जो मदिरा पीने वालोंके साथ संसर्ग रखता है, उसके घर खास कर साधु आहार नहीं लेते हैं ॥२॥ ____ कोलिको-कोलिक-कपड़ा बुनने वाला-जुलाहा मालाकार, कुम्भकार, तेली और नाई ये पांच स्पृश्य कारु कहलाते हैं ॥३॥ रजकस्-धोबी, बढ़ई, लोहार, सुनार और सिलावट इत्यादि बहुतसे कार माने गये हैं ॥४॥ क्रियते-मोक्षका अभिलाषी मुनि इनके घर भोजन नहीं करता है। इन्हींके समान अन्य लोगोंका भी अपने मनसे विचार कर लेना चाहिये ।।५।। ..' वर स्वहस्तेन अपने हाथसे रसोई पका लेना अच्छा है परन्तु मिथ्यादृष्टियों के घर भोजन करना अच्छा नहीं है क्योंकि उससे समस्त सावधोंपापोंका संगम होता है ॥६॥ गाथार्थ-जो निर्ग्रन्थ हो-परिग्रह से रहित हो अथवा निग्रन्थ हो नि-अतिशयपूर्ण ग्रन्थों से सहित हो, निःसङ्ग हो-स्त्री आदिके संपर्क से १. नीतिसारे इन्द्रनन्दिनः। २. शासिका म०। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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