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षट्प्राभृते
[४. ३८निर्देशो ज्ञातव्यः, एवमुत्तरत्रापि । ( आहारणिहारवज्जियं ) आहारनिहारवर्जितः कवलाहाररहितोऽहंन भवति नीहार-रहितो बहिर्भूमिवाधारहितः । अनेन वाक्येन श्वेतपटमतं निराकृतम् । ( विमलं ) शरीरे मलमहतो न भवति । ( सिंहाण खेल सेओ ) सिंहाणः नासायां मलो न भवति । खेलो निष्ठीवनमर्हति नास्ति, स्वेदश्च शरीरे प्रस्वेदोऽर्हति न वर्तते । ( णत्थि दुगंछा य दोसो य ) अन्यदपि जुगुप्साहेतुभूतं किमपि पिटकादिकं अर्हति न वर्तते दोषश्च वातपित्तश्लेष्माणोऽहंति न वर्तन्ते ॥३७॥
दस पाणा पज्जत्ती अट्ठसहस्सा य लक्खणा भणिया । गोखीरसंखधवलं मंसं रुहिरं च सव्वंगे ॥३८॥ दश प्राणाः पर्याप्तयोऽष्टाधिकसहस्राणि च लक्षणानि भणितानि । गोक्षीरशङ्खधवलं मां रुधिरं च सर्वाङ ।३८।।
( द पाणा पज्जत्ती ) दश प्राणाः पूर्वोक्तलक्षणा अर्ह ति भवन्ति, षट् पर्याप्तयश्चाहति भवन्ति । ( अट्ठसहस्सा य लक्खणा भणिया ) अष्टाधिकं सहस्र मेकं marawww रहित हैं । प्राकृत में लिङ्ग भेद होने से 'जरवाहि दुक्खरहियं, यहाँ नपुसकलिङ्गका निर्देश जानना चाहिये। इसी प्रकार का लिङ्ग भेद आगे भी जानना चाहिये। अरहन्त भगवान आहार और निहार से रहित हैं अर्थात् उनके कवलाहार नहीं होता और न नीहार-मलमूत्र की बाधा होती है। इस वाक्य से श्वेताम्बर मतका निराकरण हो जाता है । अरहन्त के शरीर में मैल नहीं होता है। नाकका मल, थूक तथा पसाना उनके शरीर में नहीं होता है। इसके सिवाय ग्लानि के कारण भूत अन्य पात्र आदि भी अरहन्त के नहीं होते हैं। वात पित्त और कफ ये दोष भी अरहन्त में नहीं रहते हैं ॥३॥
गाथार्थ-अम्हन्त भगवान के दश प्राण, छह पर्याप्तियाँ और एक हजार आठ लक्षण कहे गये हैं। उनके समस्त शरीर में गाय के दूध और शङ्ख के समान सफेद मांस और रुधिर होता है ।।३८॥
विशेषार्थ-अरहन्त भगवान के पाँच इन्द्रिय, तोन बल, आयु और श्वासोच्छवास इस प्रकार दश प्राण, आहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छवास, भाषा और मन ये छह पर्याप्तियाँ तथा एक हजार आठ लक्षण कहे गये हैं । इन एक हजार आठ लक्षणों में तिल मसक आदि नौ सौ
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