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बोधप्राभृतम्
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( पज्जत्तिगुणसमिद्धो ) षट्पर्याप्तिगुणसमृद्धः संयुक्तः । ( उत्तमदेवो हवइ अरहो ) उत्तमदेवो भवत्यर्हन् न तु हरिहरहिरण्यगर्भादय उत्तमदेवा भवन्ति तेषां दोषसद्भावात् । उक्तञ्च
द्रुहिणाघोक्षजे शानशाक्यसूरपुरःसराः ।
यदि रागाद्यधिष्ठानं कथं तत्राप्तता भवेत् ॥ १ ॥
रागादिदोषसंभूतिर्ज्ञेयामीषु तदागमात् । असतः परदोषस्य गृहोतौ पातकं महत् ॥ २ ॥ अजस्तिलोत्तमाचित्तः श्रीरतः श्रीपतिः स्मृतः । अर्धनारीश्वरः शम्भुस्तथाप्येषु किलाप्तता ॥ ३ ॥
आगे प्राणों की अपेक्षा अरहन्त का वर्णन करते हैं - पंचवि इंदियपाणा मणवयकाएण तिष्णि बलपाणा । आणप्पाणप्पाणा आउगपाणेण होंति दह पाणा ॥ ३५ ॥ पञ्चापि इंन्द्रियप्राणा मनोवचः कायैः त्रयो बलप्राणाः । आनपानप्राणाः आयुष्कप्राणेन भवन्ति दश प्राणाः ॥ ३५ ॥ ( पंच वि इंदियपाणा ) इंद्रियप्राणाः पञ्च भवन्ति । ( मणवयकाएण तिष्णि बलपणा ) मनोवचः कायैर्बलप्राणास्त्रयो भवन्ति । ( आणप्पाणपाणा )
अरहन्त भगवान ऊपर कही हुई आहार आदि छह पर्याप्तियों के गुणसे समृद्ध हैं - संयुक्त हैं तथा उत्तम देव हैं । हरिहर ब्रह्मा आदि उत्तमदेव नहीं हैं क्योंकि उनमें दोषोंका सद्भाव है । जैसा कि कहा है
दुहिणा - ब्रह्मा, विष्णु, महेश बुद्ध तथा सूर्य आदि देव यदि राग आदिके आधार हैं अर्थात् इनमें यदि राग आदि दोष पाये जाते हैं तो • उनमें आप्तपना कैसे हो सकता है ?
रागादि - इन सबमें राग आदि दोषोंका सद्भाव उनके शास्त्रों से जानने योग्य है क्योंकि दूसरे के अविद्यमान दोष के ग्रहण करने में महान पाप है ।
अजस् - ब्रह्मा का चित्त तिलोत्तमा में लगा था, विष्णु लक्ष्मी में आसक्त थे और शम्भु अर्धनारीश्वर थे फिर भी इनमें आप्तपना हैइन्हें आप्त माना जाता है यह आश्चर्य की बात है ||३४|
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गाथा - पाँच इन्द्रिय प्राण, मन, वचन और कार्यके भेदसे तीन बल प्राण, श्वासोच्छ्वास प्राण तथा आयुप्राण ये दश प्राण हैं । अरहन्त के ये दशों प्राण होते हैं ||३५||
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