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________________ १९४ षट्प्राभृते . [४. ३३भयवचनयोगी, औदारिककाययोगौदारिकमिश्रकाययोग-वैक्रियिककाययोगवैक्रियिकमिश्रकाय-योगाहारके-काययोगाहारक-मिश्रकाययोग-कार्मणकाययोगानां मध्ये हतः औदारिककाययोगौदारिकमिश्रकाययोग-कार्मणकाययोग इति त्रियोगाः । सत्यमनोयोगोऽनुभयमनोयोगः सत्यवचनयोगोऽनुभयवचनयोग औदारिककाययोग औदारिकमिश्रकाययोगः कार्मणकाययोगश्चेति सप्तयोगाः। ( वेए ) स्त्रीन्नपुसकवेदत्रयमध्येऽहंतः कोऽपि वेदो नास्ति । ( कसाय ) पञ्चविंशतिकपायाणां मध्ये:हंतः कोऽपि कषायो नास्ति । ( णाणे य ) पञ्चज्ञानानां मध्येऽर्हतः केवलज्ञानमेकम् । ( संजम ) सप्तानां संयमानां मध्येऽर्हतः संयम एक एव यथाख्यातचीरित्रम् । । दंसण ) चतुर्णा दशनानां मध्ये दर्शनमेकमेव केवलदर्शनम् ( लेस्सा) षण्णां लेश्यानां मध्येऽहतो लेश्या एककशुक्ललेश्या । ( भविया ) भव्याभव्यद्वयमध्येऽहन् भव्य एव । ( सम्मत्त ) षण्णां सम्यक्त्वानामहंतः सम्यक्त्वमेकमेव योग, आहारक काययोग, आहारक मिश्र काययोग और कार्मण काययोग ये सात भेद हैं इसमें से अरहन्त के औदारिक काययोग तथा समुद्घातको अपेक्षा औदारिक मिश्रकाययोग और कार्मण काययोग ये तीन काययोग हैं। इस तरह अरहन्त के सब मिलाकर सातयोग होते हैं जो इस प्रकार हैं-१ सत्यमनोयोग २ अनुभयमनोयोग, ३. सत्यवचनयोग ४ अनुभय वचन योग ५ औदारिककाययोग ६ औदारिकमिश्रकाययोग और ७ कार्मणकाय योग। वेदमार्गणाके स्त्री वेद, पुरुषवेद और नपुसक वेद ये तीन भेद हैं,, इनमें से अरहन्तके कोई भी वेद नहीं है. । कषायके अनन्तानुबंधी आदि पच्चीस भेद हैं उनमें से अरहन्तके कोई भी कषाय नहीं है। ज्ञानके मतिज्ञान आदि पाँच भेद हैं इनमें से अरहन्तके एक केवलज्ञान है। संयम मार्गणा के सायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसाम्पराय, यथाख्यात, संयमासंयम और असंयम को अपेक्षा सात भेद हैं, इनमें से अरहन्तके एक यथाख्यात चारित्र है । दर्शन के चक्षुर्दर्शन, अचक्षु. दर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन ये चार भेद हैं इनमें से अरहन्तके एक केवलदर्शन हो हैं । लेश्याके कृष्ण, नील, कापोत, पीत, पद्म और शुक्ल ये छह भेद हैं इनमें से अरहन्त के एक शुक्ल लेश्या ही है। भव्यत्व मार्गणाके भव्य और अभव्य ये दो भेद हैं इनमें से अरहन्त भव्य ही हैं | सम्यक्त्व मार्गणाके औपशमिक सम्यक्त्व,क्षायोपशमिक सम्यक्त्व, क्षायिक सम्यक्त्व, मिश्र, सामादन और मिथ्यात्व इस प्रकार छह भेद हैं इनमेंसे अरहन्तके एक क्षायिक सम्यक्त्व ही होता है। संज्ञी मार्गणा के संज्ञी और असंज्ञी ये दो भेद हैं इनमें से अरहन्त एक संधी ही हैं। और माहार मार्गणा के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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