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षट्प्राभृते
[ ४. ३१
गुणठाणमग्गणेहिं य पज्जत्तीपाणजीवठार्णोह । ठावण पंचविहेहि पणयव्वा अरुहपुरिसस्स ॥ ३१ ॥ गुणस्थानमार्गणाभिश्च पर्याप्तिप्राणजीवस्थानैः । स्थापना पञ्चविधः प्रणतव्या अर्हत्पुरुषस्य ||३१|| ( गुणठाणमग्गणे हि य) गुणस्थानेनार्हन् प्रणेतव्यो योजनीयः । कानि तानि
- गुणस्थानानि ? तन्निर्देशो गाथाद्वयेन क्रियते -
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'मिच्छा सासण मिस्सो अविरयसम्मो य देसविरओ य । विरया पमत्त इयरो अपुत्र अणियट्टि सुमो य ॥ १ ॥ उवसंतखीणमोहो सजोग केवलिजिणो अजोग्री य । चउदस गुणठाणाणि य कमेण सिद्धाय णायव्वा ॥२॥
मागंणाश्चतुर्दश निर्देक्ष्यति । ( पज्जत्ती ) षड्भिः पर्याप्तिभिरर्हन् प्रणेतव्यः । ता अपि निर्देक्ष्यति । ( पाणजीवठाणेह ) प्राणैर्दशभिरर्हन् प्रणेतव्यः । तानपि निर्देक्ष्यति । जीवस्थानानि चतुर्दशसु गुणस्थानेषु जीवा ये सन्ति तानि जीवस्था - नानि । तानि गुणस्थान निर्देशेन ज्ञातव्यानि । ( ठावण पंचविहेहि ) एवं गुणस्थानमार्गणा पर्याप्ति प्राणजीवस्थान-स्थापना पंचविधः स्थापना योजना
गाथार्थ - गुणस्थान, मार्गणा, पर्याप्ति, प्राण और जीवस्थान इन पाँच प्रकारों से अरहंत भगवान् की स्थापना करना चाहिये ||३१||
विशेषार्थ - गुणस्थान के द्वारा अरहन्त की योजना करना चाहिये । वे गुणस्थान कौन हैं ? इसका निर्देश दो गाथाओं द्वारा किया जाता है
मिच्छा -१ मिथ्यादृष्टि २ सासादन ३ मिश्र ४ अविरतसम्यग्दृष्टि ५ देशविरत ६ प्रमत्तविरत ७ अप्रमत्तविरत ८ अपूर्वकरण ९ अनिवृत्तिकरण १० सूक्ष्मसाम्पराय ११ उपशान्तमोह १२ क्षीणमोह १३ सयोग केवलि जिन और १४ अयोगकेवलिजिन ।
मार्गणा के द्वारा अरहन्त की योजना करना चाहिये । मार्गणाएँ चौदह हैं उनका निर्देश आगे करेंगे। छह पर्याप्तियोंके द्वारा अरहन्त का निरूपण करना चाहिये। उन पर्याप्तियों का भी आगे निर्देश करेंगे । दश प्राणोंके द्वारा अरहन्त भगवान् का वर्णन करना चाहिये। उन प्राणों का भी आगे निर्देश करेंगे। जीवस्थानों के द्वारा अरहन्तकी योजना करना चाहिये । चौदह गुणस्थानों में जो जीव रहते हैं वही जीवस्थान हैं ।
१. जीवकाण्डे नेमिचन्द्रस्य ।
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