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________________ - ४.३० ] बोप्राभृतम् १८७ च) पुण्यं पापं च हत्या | ( हंतूण दोसकम्मे ) हत्वा विनाश्य दोषानष्टा दश-दोषान् । के ते ?-- -'क्षुत्पिपासाजरातङ्कजन्मान्तक भयस्मयाः । न रागद्वेषमोहाश्च यस्याप्तः स प्रकीत्यंते ॥ चकाराच्चिन्तारति--निद्रा-विषादस्वेद - खेद - विस्मया गृह्यन्ते । कम्मे घातिकर्माणि तूण हत्वा ( उ णाणमयं च अरहंतो ) भूतः संजातः । कीदृश: ? णाणमयं-ज्ञानमयः केवलज्ञानवान् । अर्हन्, इन्द्रादिकृतामर्हणां पूजामनन्यसंभविनीमहंतीत्यर्हन् सर्वज्ञः वीतरागः ॥ ३०॥ गमन होता है । वे पुण्य पापको भी नष्ट कर चुकते हैं, कषायोदय की मन्दता में होने वाले शुभ परिणाम पुण्य और कषायोदय की तोव्रता में होने वाले अशुभ परिणाम को पाप कहते हैं कषायोदयका अभाव होने से अरहन्त भगवान के पुण्य और पाप दोनोंका अभाव रहता है | अरहन्त भगवान दोषों तथा कर्मोंको नष्ट करके अरहन्त बनते हैं । प्रश्न-दोषसे क्या अभिप्राय है ? उत्तर - अठारह दोष । जैसे— क्षुत्पिपासा - क्षुधा, प्यास, बुढापा, रोग, जन्म, मरण, भय, गर्व, राग, द्वेष, मोह और चकारसे चिन्ता, अरति, निद्रा, विषाद, स्वेद, खेद, और विस्मय ये अठारह दोष हैं जिस पुरुष में ये अठारह दोष नहीं होते हैं, वह आप्त कहलाता है । प्रश्न - कर्मसे क्या अभिप्राय है ? उत्तर - घातिया कर्म 1 ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय इन चार घातिया कर्मों को नष्ट करने से ही अरहन्त अवस्था प्रगट होती है । इन सब जरा, व्याधि आदिको नष्ट करके जब यह जीव ज्ञानमय -- केवलज्ञान रूप हो जाता है तब अरहन्त कहलाता है। इसे प्राकृत भाषामें 'अरहंत' और संस्कृत भाषा में 'अर्हत्' कहते हैं । अर्हत् शब्द 'अहं' धातु सिद्ध होता है । उसका निरुक्तार्थ है— जो दूसरे जीवों में न पाई जाने वाली इन्द्रादिकृत अर्हणा -- पूजाको प्राप्त करनेकी योग्यता रखता हो वह 'अर्हत्' है । समस्त पदार्थों के ज्ञाता होने से इन्हें सर्वज्ञ तथा रागद्वेष से रहित होने के कारण वीतराग भी कहते हैं ||३०|| १. रत्नकाण्ड श्रावकाचारे । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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