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________________ -४. २८ ] बोषप्राभृतम् १८३ अथेदानीं चतुर्दशभिर्गाथाभिरहंत्स्वरूपमहाधिकारं प्रारभन्ते श्री कुन्दकुन्दा चार्या:-- णामे ठवणे हि य संव्वे भावेहि सगुणपज्जाया । चउणादि संपदिमं भावा भावंति अरहंतं ॥२८॥ नाम्नि स्थापनायां हि च द्रव्ये भावे च स्वगुणपर्यायाः । च्यवनमार्गतिः संदिमं भब्या भावयन्ति अर्हन्तम् ||२८|| ( णामे ) नामन्यासे सति । ( ठवणे ) स्थापनान्यासे सति । (हि) स्फुटं । चकारः पादपूरणार्थ: । ( संदव्वे ) समीचीने द्रव्यन्यासे सति ( भावे ) य भावन्यासे च सति ( सगुणपज्जाया ) स्वगुणा अनन्तज्ञानानन्तवीर्यानन्तसुखसंज्ञा अर्हन्तो भवन्तीत्युपस्कारः । स्वपर्यायाः दिव्यपर मौदारिकशरीराष्टमहाप्रातिहार्थसमवशरणलक्षणा: पर्याया अर्हन्तो भवन्तीत्युपस्कर्तव्यः । ( चउणं ) स्वर्गान्नरकाद्वा च्यवनं । ( आर्गादि . ) भरतादिक्षेत्रेष्वागमनं ( संपत् ) गर्भावतारात्पूर्वमेव षण्मासान् रत्न अब आगे चौदह गाथाओं द्वारा श्री कुन्दकुन्दाचार्य अहंत्स्वरूप नामक महाधिकारका प्रारम्भ करते हैं गाथार्थ – नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव ये चार निक्षेप, स्वकीयगुण, स्वकीयपर्याय, च्यवन, आर्गात, और संपदा इन नौ बातोंका आश्रय करके भव्य जीव अरहंत भगवान् का चिन्तन करते हैं ||२८|| विशेषार्थये - गुण जाति क्रिया और द्रव्य की अपेक्षा न रखकर किसी वस्तु के नाम रखने को नाम निक्षेप कहते हैं । तदाकार और अतदाकार वस्तु में किसी की कल्पना करनेको स्थापना निक्षेप कहते हैं। भूत भविष्यत् कालकी मुख्यता से पदार्थ के वर्णन करनेको द्रव्य निक्षेप कहते हैं और जो पदार्थ वर्तमान में जिसरूप है उसी रूप उसके कथन कहने को भाव निक्षेप कहते हैं। इन चारों निक्षेपों की अपेक्षा अरहन्तका कथन होता है । अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तवीर्यं और अनन्तसुख ये अहंत के स्वकीय गुण हैं। दिव्य परमोदारिक शरीर, अष्ट महाप्रातिहार्यं और समवशरण ये अरहन्त भगवान् को स्वकीय पर्याय हैं । अर्हन्त भगवान — तीर्थंकर भगवान स्वर्ग अथवा नरक गतिसे च्युत होकर उत्पन्न होते हैं । भरत, ऐरावत और विदेहक्षेत्र में उनका आगमन होता है अर्थात् स्वर्ग या नरक से च्युत होकर इन क्षेत्रों में उत्पन्न होते हैं। उनके गर्भावतरण के छहमास १. संपदिये ग० । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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