________________
-४. ७ ]
बोधप्राभृतम्
मृतस्स ) विशुद्धध्यानस्य आतंरौद्रध्यानद्वयरहितस्य धम्यंशुक्लध्यानद्वयसहितस्य गणधरकेवलिनो 'मूढ-केवलिनस्तीर्थंकरपरमदेवकेवलिनो वा । कथंभूतस्यैतत्त्रयस्य ? ज्ञान युक्तस्य सकलविमल केवलज्ञान युक्तस्य । ( सिद्धायदणं सिद्ध ) सिद्धायतनं सिद्ध ं सिद्धायतनं प्रतिपादितम् । कस्य ? ( मुणिवरवसहस्स ) मुनिवरवृषभस्य मुनिवराणां मध्ये वृषभस्य श्रेष्ठस्य । कथंभूतमायतनम् ? ( मुणिदत्थं ) मुनिता ( ?) यथावद्विज्ञाता अर्थाः षड्द्रव्याणि पञ्चास्तिकायाः सप्ततत्वानि नव पदार्थाः । जीवपुद्गलधर्माधर्म कालाकाशा इति षड्द्रव्याणि । कालरहितानि षद्रव्याणि पञ्चास्तिकाया भवन्ति । जीवाजीवास्रव बन्धसंवरनिर्जरामोक्षास्तत्वानि । सन्त तान्येव पुण्यपापद्वयसहितानि नव पदार्था वेदितव्याः ।
युक्त अर्थात् समस्त पदार्थोको विषय करनेवाले निर्मल केवलज्ञानसे युक्त गणधर केवली, सामान्य केवली अथवा तीर्थंकर परम देव केवलीस्वरूप जिम श्रेष्ठ मुनिवर को सदर्थ - निजात्मस्वरूप सिद्ध हुआ है—उपलब्ध हुआ है, उसके सिद्धायतन कहा गया है। श्रेष्ठ मुनिका यह सिद्धायतन रूप ज्ञातार्थ है अर्थात् छह द्रव्य, पञ्चास्तिकाय, सात तत्व और नव पदार्थों को जाननेवाला है । जीव पुद्गल धर्मं अधर्मं आकाश और काल ये छह द्रव्य हैं । इन्हीं में से काल को छोड़कर शेष पांच द्रव्य पञ्चास्तिकाय हैं। जोव अजीव आस्रव बन्ध संवर निर्जरा और मोक्ष ये सात तत्व हैं। पुण्य और पाप इन दो को मिला देने पर सात तत्व ही नव पदार्थ कहलाते हैं। इसप्रकार आयतन अधिकार समाप्त हुआ ||७|
१४७
[ यहाँ तीन गाथाओं में आयतन का स्वरूप कहा है। पहली गाथामें मन, वचन, काय इन तीन योगों तथा पञ्च इन्द्रियों और उनके विषयोंको स्वाधीन रखनेवाले सामान्यमुनियों के रूप को आयतन कहा है । दूसरी गाथा में क्रोधादि विकारों पर पूर्ण विजय प्राप्त करने वाले, पञ्च महाव्रतों के धारक महर्षियों ऋद्धिधारक मुनियों को आयतन का - है और तीसरी गाथा में निर्मलध्यान से सहित केवलज्ञान से युक्त गणधर केवली, सामान्य केवली अथवा तीर्थंकर केवली को सिद्धायतन कहा है । आयतन स्थानको कहते हैं । जो सद्गुणोंका स्थान है वही जिनागम में आयतन नामसे प्रसिद्ध है । परम वैराग्य से युक्त सद्गुरुओंके सिवाय
१. मुण्ड - म०, मूढ क०, गणधरकेवलज्ञानयुक्तस्य ख० अस्यां प्रती गणधर - इत्यग्र े ( केवलिनो मूढ - केवलिन स्तीथंकरपरमदेवकेवलिनो वा, कथंभूतस्यैतत्त्रयस्य ज्ञानयुक्तस्य सकलचिमल ) इति पाठो नास्ति ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org