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-३. २६]
सूत्रप्राभृतम् स्वर्गेऽपि गताः पुनः स्त्रीलिङ्ग न लभते । तदप्युक्तं समन्तभद्रेण महाकविना
'सम्यग्दर्शनशुद्धा नारकतिर्यङ्नपुंसक स्त्रीत्वानि ।
दुष्कुलविकृताल्पायुदरिद्रतां च व्रजन्ति नाप्यवतिकाः ॥१॥ (घोरं चरिय चरित्त ) घोरं कातरजनभीतिजनकं चरित्रं चरित्वा षोडशसु स्वर्गेष्वन्यतमं स्वर्ग यान्ति अहमिन्द्रत्वमपि स्त्रीभवे न लभन्ते कथं मोक्षं स्त्रीभवे प्राप्नुवन्ति । तेन कारणेन ( इत्थीसु ण पावया भणिया ) स्त्रीषु न प्रव्रज्या निर्वाणयोग्या दीक्षा भणिता । इत्यनया गाथया सितपटानां मतं स्त्रीमुक्तिप्राप्तिलक्षणं - परित्यक्तं भवति । मरुदेवी-ब्राह्मी-सुन्दरी-यशस्वती-सुनन्दा-सुलोचना सीता-राजीमती-चन्दना-अनन्तमति द्रौपदीत्यादिकाः स्त्रियः स्वर्गं गता न तु मोक्षमिति ।
चित्तासोहि ण तेसि ढिल्लं भावं तहा सहावेण । विजदि मासा तेसि इत्थीसु ण संकया साणं ॥२६॥
चित्ताशोधिन तासां शिथिलो भावस्तथा स्वभावेन ।
विद्यन्ते मासास्तासां स्त्रीषु नाशङ्कया ध्यानम् ॥२६॥ सम्यग्दर्शन शुखा-सम्यग्दर्शन से शुद्ध मनुष्य व्रत-रहित होने पर भी मरक, तिर्यञ्च नपुसक, स्त्री-पर्याय, नीच-कुल, विकलाङ्ग-अवस्था, अल्प वायु और दरिद्रता को प्राप्त नहीं होते।
स्त्री, भोरु-मनुष्य को भय उत्पन्न करने वाले चारित्रका आचरण करके सोलह स्वर्गों में से किसी स्वर्ग को प्राप्त होती है। स्त्रियां स्त्रीभव में जब अहमिन्द्रपद को प्राप्त नहीं कर सकतीं तब मोक्ष कैसे प्राप्त कर सकती हैं ? इसी कारण से स्त्रियों में निर्वाण प्राप्ति के योग्य दीक्षा नहीं कही गई है। इस गाथा से श्वेताम्बरीय स्त्री-मुक्तिमत का निराकरण हो जाता है । मरुदेवी, ब्राह्मी, सुन्दरी, यशस्वती, सुनन्दा, 'सुलोचना, सीता, राजीमति, चन्दना, अनन्तमति तथा द्रौपदी आदि स्त्रियाँ स्वर्ग गई हैं, मोक्ष नहीं गई हैं ॥२५॥ - गावार्थ-स्त्रियोंके चित्तकी शुद्धता नहीं है, उनके परिणाम स्वभावसे ही शिथिल रहते हैं, प्रत्येक मासमें उनके रुधिरस्राव होता है और निर्भयता पूर्वक उनके ध्यान नहीं होता ॥२६॥ १. रलकरणश्रावकाचारे। २. प्रत्युक्तं म.क.
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