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________________ षट्नाभृते [३. २२कोपीनोऽसौ रात्रिप्रतिमायोगं करोति नियमेन । लोचं पिच्छं धृत्वा भुङ क्ते ह्य पविश्य पाणिपुटे ॥ ३ ॥ वीरचर्या च सूर्यप्रतिमा त्रैकाल्ययोगनियमश्च । सिद्धान्तरहस्यादिष्वध्ययनं नास्ति देशविरतानाम् ॥ ४ ॥ लिंग इत्थीणं हवदि भुजइ पिडं सुएयकालम्मि । अज्जिय वि एक्कवत्था वत्थावरणेण भुजेइ ॥२२॥ लिङ्ग स्त्रीणां भवति भुङ क्ते पिंड स्वेककाले। आर्यापि एकवस्त्रा वस्त्रावरणेन भुङ्क्ते ॥ २२ ॥ (लिंग इत्थीणं हवदि ) तृतीयं लिङ्ग वेषः स्त्रीणां भवति । ( भुंजइ पिउँ सुएयकालम्मि ) भुक्ते पिण्डमाहारं सुष्छु निश्चलतया एककाले दिवसमध्ये एकवारम् । ( अज्जिय वि एक्कवत्था ) आर्यापि एकवस्त्रा भवति अपि शब्दात् ।। का होता है १ क्षुल्लक और ऐलक । पहला एक वस्त्र तथा कौपीन को धारण करता है और दूसरा कोपोनमात्र ही रखता है ॥ २ ॥ कोपीनोऽसौ-मात्र कोपीन को धारण करने वाला ऐलक रात्रि में प्रतिमा योग धारण करता है, नियम से केशलोंच करता है, पीछी रखता है और बैठ कर हस्त-पुटमें आहार करता है ॥ ३ ॥ बोरचर्या–वीर चर्या-मुनियों की तरह च के लिये निकलना, सूर्य प्रतिमा-दिन में नग्न होकर प्रतिमायोग धारण करना, शीत, उष्ण और ग्रीष्म ऋतुमें योगधारण करना और सिद्धान्त तथा प्रायश्चित्त आदि शास्त्रोंका अध्ययन करना श्रावकों के लिये निषिद्ध है ॥ ४ ॥॥२१॥ गाथार्थ-तीसरा लिङ्ग स्त्रियों का है इस लिङ्ग को धारण करने वाली स्त्री दिनमें एक ही बार आहार ग्रहण करती है। वह आर्यिका भी हो तो एक हो वस्त्र धारण करे और वस्त्र के आवरण सहित भोजन करे॥२२॥ विशेषार्थ--स्त्रियोंमें उत्कृष्ट वेषको धारण करने वाली आर्थिका और क्षुल्लिका दो हैं। दोनों ही दिन में एक बार आहार लेती हैं। आर्यिका मात्र एक वस्त्र-सोलह हाथ की एक सफेद साड़ी रखती है और अपि शब्दसे ध्वनित होता है कि क्षुल्लिका एक साड़ी के सिवाय एक ओढ़ने की चद्दर भी रखती हैं। भोजन करते समय एक साड़ी रख कर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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