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________________ - १२ - वंदित्तु सव्वसिद्धे धुवमचलमणोपमं गई पत्ते । वोच्छामि समयपाहुडमिणमो सुयकेवली भणियं ॥-समयसार १. श्रवणबेलगोलकी चन्द्रगिरि पर्वत पर महनवमी मण्डपमें दक्षिण मुख स्तम्भ पर शक सं० १०८५' के लेख संख्या ४०में श्रुतकेवली भद्रबाहु भौर चन्द्रगुप्तके बाद आचार्य कुन्दकुन्द इनके बाद आ० उमास्वातिका उल्लेख करके इन्हें भद्रबाहके अन्वयका ही बतलाया है । इस लेखका मुख्यांश इसप्रकार है श्रीभद्रः सर्वतो यो हि भद्रबाहुरिति श्रुतः । श्रुतकेवलि नाथेषु चरमः परमो मुनिः ॥ चन्द्रप्रकाशोज्वलचन्द्रकीर्तिः श्रीचन्द्रगुप्तोऽजनि तस्य शिष्यः । यस्य प्रभावाद वनदेवताभिराराधितः स्वस्य गणो मुनीनाम् ।। "तस्यान्वये भू-विदिते बभूव यः पद्मनन्दिप्रथमाभिधानः । श्रीकोण्डकुन्दादि-मुनीश्वराख्यस्सत्संयमादुद्गत-चारणाद्धिः ॥ अभू दुमास्वाति मुनिश्वरोऽसावाचार्य शब्दोत्तरगद्धपिच्छः । तदन्वये तत्सदृशोऽस्ति नान्यस्तात्कालिकाशेष-पदार्थ वेदी ॥ पद्मनन्दि कुन्दाकुन्दाचार्यका ही अपर नाम है । टीकाकार जयसेनाचार्य तथा ब्रह्मदेवने कुमारनन्दि सिद्धान्तदेवको भी कुन्दकुन्दाचार्यका गुरु बतलाया है, जबकि नन्दिसंघकी पट्टावलीमें जिनचन्द्रको गुरु बतलाया है। किन्तु भद्रबाहुको भाचार्य कुन्दकुन्दने गमकगुरुके रूपमें जिस तरह स्मरण किया है उससे आ० भाबाहुको ही उनका गुरु मानना अधिक उपयुक्त है। कलिकाल-सर्वज्ञ आचार्य कुन्दकुन्दके अनेक नाम . साहित्य और शिलालेखोंमें इनके विभिन्न नामोंका उल्लेख मिलता है जिनमें कोण्डकुन्द ( कुन्दकुन्द ), पद्मनन्दि, वक्रग्रीव, एलाचार्य, महामुनि, गृढपिच्छ प्रमुख नाम हैं। नन्दिसंघसे सम्बद्ध विजयगनरके १३८६ ई० के एक शिलालेखमें तथा नन्दिसंघ पट्टावलीमें इस तरह नामोंका उल्लेख है १. शक संवत्में ७८ जोड़ देने पर उसका ईसवी सन् निकल आता है, ६०५ जोड़ देने पर वीर निर्वाण संवत् तथा १३५ संख्या जोड़ देने पर विक्रम संवत् निकाल लिया जाता है। २. (क) समयप्राभृत भूमिका पृ० ४. (ख) पञ्चास्तिकाय पर ब्रह्मदेव ( १२वीं सदी ) की टीकाको उत्थानिका. ३. जैन सिद्धान्त भास्कर वर्ष १ अंक ४ पृ० ७८. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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