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________________ -२.३१] चारित्रप्राभृतम् स्वामि-पर्यन्तश्च । ( जं च महल्लाणि ) यच्च यस्मात्कारणात् महल्लाणि-स्वयं महान्ति गुरुतराणि । ( तदो महल्लया इत्तहे ) ततस्तस्मात्कारणात् इत्तहेएतस्माद्धेतोः ( ताई ) तानि महाव्रतानीत्युच्यन्ते ।।३०॥ वयगुत्ती मणगुत्ती इरियासमिदी सुदाणणिक्खेवो। अवलोयभोयणाए हिंसाए भावणा होति ॥३१॥ वचोगुप्तिः मनोगुप्तिः ईर्यासमितिः सुदाननिक्षेपः । अवलोक्य भोजनेन अहिंसाया भावना भवन्तिः ॥३१॥ ( वयगुत्ती ) वचोगुप्तिरेका। (मणगुत्ती ) मनोगुप्तिद्वितीया भावना। (इरियासमिदी ) ईर्यासमितिस्तृतीया भावना । ( सुदाणणिक्खेवो ) आदाननिक्षेपः पुस्तककमण्डल्वादिकमुपकरणं पूर्व विलोक्य मृदुना मयूरपिच्छेन प्रतिलिख्य गृह्यते प्रियते च सुदान-निक्षेप उच्यते । ( अवलोयभोयणाए ) अवलोक्य पुनः पुनः दृष्ट्वा भोजनं क्रियतेऽवलोक्य भोजनं तेन विलोक्य भोजनेन । प्राकृते लिङ्गभेदः नपुसकस्य स्त्रोत्वं एता अहिंसामहाव्रतस्य पंचभावना भवन्तीति वेदितव्यम् ॥३१॥ mimmmmmmmmmmmmmm लेकर महावीर पर्यन्त तीर्थंकरों ने, वृषभसेन को आदि लेकर गौतमान्त गणधरों ने तथा जम्बूस्वामी पर्यन्त सामान्य केवलियों ने इनका आचरण किया है, इनका आदर किया है इसलिये इन्हें महाव्रत कहते हैं। और तीसरे हेतु में कहा है कि वे स्वयं महान् हैं-अत्यन्त श्रेष्ठ हैं इसलिये महाव्रत कहे जाते हैं ॥३०॥ गाथार्थ-वचन-गुप्ति, मनो-गुप्ति, ईर्या-समिति आदान-निक्षेप · समिति और आलोकित-पान ये पाँच अहिंसाव्रत की भावनाएं हैं ॥३१॥ ___विशेषार्थ-वचन गुप्ति अर्थात् वचनको रोकना, मनोगुप्ति अर्थात् मनको रोकना, ईर्या समिति अर्थात् चार हाथ भूमि देखकर चलना, सुदाननिक्षेप अर्थात् पुस्तक कमण्डलु आदि उपकरणों को पहले देख कर . तथा मयूरपिच्छी से साफ कर उठाना धरना और अवलोक्य भोजन अर्थात् बार बार देख कर भोजन ग्रहण करना ये पाँच अहिंसा महाव्रत की भावनाएं हैं ॥३१॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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