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________________ षट्नामृते २ २७क्षणाच मनादिकं च विशेषशास्त्रोक्तं ज्ञातव्यम् । ( सुद्धं संजमचरण जइधर्म णिक्कलं बोच्छे ) शुद्ध परिपूर्णविशुद्धिसहितं यतिधर्म निष्कल वक्ष्ये कथ. यिष्यामि इति वचनाच्छ्रावकधर्मस्य च तारतम्येनोत्कृष्टता सूचिता भवतीति ज्ञातव्यम् ॥२६॥ पंचिदियसंवरणं पंचवया पंचविंसकिरियास। पंचसमिदि तयगुत्ती संजमचरणं निरायारं ॥ २७॥ पञ्चेन्द्रियसंवरणं पञ्चव्रताः पञ्चविंशतिक्रियासु। पञ्चसमितयः तिस्रो गुप्तयः संयमचरणं निरागारम् ॥ २७ ॥ (पंचिदियसंवरणं) पञ्चानामिन्द्रियाणां संवरणं कूर्मवत्संकोचनं । (पंचवया) पञ्चव्रताः। व्रत शब्दस्य पुन्नपुंसकत्वमुक्तमस्ति तेनात्र पुंस्त्वं सूचितं । तांस्तु विवरिष्यति । ( पंचविंस किरियासु ) पञ्चविंशतो क्रियासु सतीषु । ते पञ्च व्रता भवन्तीति भावः । ( पंच समिदि ) पंच समितयो भवन्ति । ( तय गृत्ती ) तिस्रो गुप्तयः ( संजम चरणं निरायारं ) निरागारमनगारं चारित्राचारो भवतीति द्वारगावा वेदितव्या ॥ २७ ॥ मुनिधर्मके कहनेकी प्रतिज्ञा करते हैं। उनके इस कथनसे श्रावक तथा मुनिधर्मका तारतम्य-होनाधिकभाव अनायास प्रकट हो जावेगा ॥ २६ ।। आगे पंचेन्द्रियसंवरका स्वरूप कहते हैं गाथार्थ-पञ्चेन्द्रियोंको वश में करना, पच्चीस क्रियामोंके रहते हुए पञ्च महाव्रत धारण करना, पञ्च समितियोंका पालन करना और तीन गुप्तियोंको धारण करना मुनियोंका संयम-चारित्र है ।। २७ ।। विशेषार्थ-स्पर्शन आदि पञ्च इन्द्रियोंको कछुएकी तरह संकुचित करना अर्थात् जिस तरह विपत्ति देख कछुआ अपने सब अवयवों को संकुचित कर पोठके नीचे कर लेता है उसी प्रकार मुनि भी अपनी स्पर्शनादि इन्द्रियोंको सब ओर से हटा कर आत्म-स्वरूप में संकुचित कर लेते हैं। पच्चीस क्रियाओं, पाँच महाव्रत तथा तीन गुप्तियोंका वर्णन कुन्दकुन्द स्वामी स्वयं आगेकी गाथाओं में करेंगे॥२७॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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