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________________ -२: २६ ] चारित्रप्राभृतम् विल्वालाबुफले च त्रिभुवनविजयी शिलीध्रकं न सेवेत'। आ पञ्चदशतिथिभ्यः पयोऽसि वत्सोद्भवात्समारभ्य ॥१॥ तथा च दृतिप्रायेसु पानीयं स्नेहं च कुतुपादिषु । व्रतस्थो वर्जयेन्नित्यं योषितश्चावतोचिताः ॥२॥ त्रिभुवनविजयोति भंगा तदुपलक्षणं सूक्ष्मकणत्वचाहिफेनादीनाम् । शिलोध्रक गोमयच्छत्रं केतकीपुष्पदण्डिका च । चर्मतुलादिधृतं गुडादिकं नादेयम् । अभ्यु विशेषार्थ-यहां श्रावकके बारह व्रतोंका सामान्य वर्णन किया है विशेषरूप से वर्णन नहीं किया है। श्रावक-सम्बन्धी विशेष क्रियाओं को इस प्रकार जानना चाहिये विल्बालाबु-श्रावकको बेल, तुम्बीफल, भांग, शिलोध्रक-बरसातमें गोबरके ऊपर उत्पन्न होने वाली छत्राकार वनस्पति जिसे कुकरमुत्ता कहते हैं, नहीं खाना चाहिये । इसी प्रकार बछडा उत्पन्न होनेके दिनसे पन्द्रह दिन तक भैंस आदिका दूध भी नहीं पीना चाहिये त्रिभुवन-विजयो भांगको कहते हैं उसे यहाँ उपलक्षण मात्र समझना चाहिये इसलिये खस खस दानेके वकल तथा अफीम आदि नशीली वस्तुओंका सेवन श्रावक को नहीं करना चाहिये । केतकी केवडा के फूल भो श्रावकको वर्जनीय हैं । ___ दृति-चमड़ेकी मशक आदि में रखा हुआ पानी, और चमड़ेकी छोटी छोटी कुप्पियों में रखा हुआ तेल भी व्रती मनुष्यको छोड़ना चाहिये । व्रती मनुष्य अव्रती मनुष्यों के योग्य धर्महीन स्त्रियोंका सेवन भी नहीं कर सकता है । चमड़े की तराजूसे तोला हुआ गुड़ आदि भी व्रती मनुष्य को ग्राह्य नहीं है । व्रती पुरुष को सामायिक या पूजा आदिके प्रारम्भमें अन्य लोगोंके समान अभ्युक्षण अर्थात् अपने ऊपर जलके छींटे देना तथा आचमन अर्थात् चुल्लू में जल भर कर चाटना आदि क्रियाएं नहीं करनी चाहिये । - अभ्युक्षण और आचमन आदिका व्याख्यान विशेष शास्त्रोंसे जानना चाहिये। इस प्रकार श्रावक का धर्म-श्रावक-सम्बन्धी चारित्राचारका वर्णन करनेके बाद श्री कुन्दकुन्द स्वामी परिपूर्ण विशुद्धिसे सहित एवं निष्कलङ्क १. सेवते म०। २. कुतपादिषु क० म० 'कुत्ः कृतेः स्नेहपात्रं सवाल्पा कुतुपः पूमान्' इत्यमरः । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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