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________________ ६६ षट्प्राभृते 'वरोपलिप्सयाशावान् रागद्वेषमलीमसाः । देवता यदुपासीत देवतामूढमुच्यते ॥४॥ २ सग्रन्थारम्भहिंसानां संसारावर्तवर्तिनाम् । पाषण्डिनां पुरस्कारो ज्ञेयं पाषण्डिमोहनम् ॥ ५ ॥ अष्टौ मदाः के ते ? ज्ञानं पूजां कुलं जाति बलमृद्धि तपो वपुः । अष्टावाश्रित्य मानित्वं स्मयमाहुर्गतस्मयाः ॥ ६ ॥ नायतनानि कानि तानि ? कुदेवगुरुशास्त्राणां तद्भक्तानां गृहे गतिः । षडनायतनमित्येवं वदन्ति विदितागमाः ॥ प्रभाचन्द्रस्त्वेवं वदति - मिथ्यादर्शनज्ञानचारित्राणि त्रीणि त्रयश्च तद्वन्तः पुरुषाः षडनायतानि । अथवा असर्वज्ञः १ असर्वज्ञायतनं २ असर्वज्ञज्ञानं ३ नदियों और समुद्र में स्नान करना, बालू और पत्थरोंका ढेर करना, पहाड़ से गिरना और अग्नि में पड़ना आदि लोकमूढ़ता कहलाती है । सग्रन्था - परिग्रह तथा आरम्भसे सहित एवं संसार रूपी भंवर में पड़े हुए पाषण्डियों – कुगुरुओं का सत्कार करना पाषण्डिमूढ़ता जानना चाहिये । • [२.६ बल, अब आठ मद कौन हैं ? इसका उत्तर देते हुए कहते हैं— ज्ञानं - ज्ञान, पूजा, कुल, जाति, आठ को लेकर अहंकार करना सो आठ प्रकारका मद है। अब छह अनायतन कौन हैं ? इसका उत्तर कहते हैं कुदेव - कुगुरु, कुदेव, कुशास्त्र और उनके भक्तोंके घर जाना इन छहको आगम के ज्ञाता पुरुष छह अनायतन कहते हैं । परन्तु प्रभाचन्द्र छह अनायतनका इस प्रकार निरूपण करते हैं । मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान, मिथ्याचारित्र ये तीन तथा तोन इनके धारक पुरुष इस प्रकार छह अनायतन हैं । अथवा असर्वज्ञका आयतन, असर्वज्ञका ज्ञान, असर्वज्ञके ज्ञानसे युक्त पुरुष, असर्वज्ञका अनुष्ठान और असर्वज्ञ के अनुष्ठानसे सहित पुरुष ये छह अनायतन हैं । १. रत्नकरण्ड श्रावकाचारे समन्तभद्रस्य । २. वही । ३. वहो । Jain Education International ऋद्धि, तप और शरीर इन For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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