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षट्नाभृते
[१. ३५विहरदि जाव जिणिंदो सहसदृसुलक्खहि संजुत्तो। चउतीस अइसयजुदो सा पडिमा थावरा भणिया ॥३५॥
विहरति यावज्जिनेन्द्रः सहस्राष्टसुलक्षणैः संयुक्तः।
चतुस्त्रिशदतिशययुतः सा प्रतिमा स्थावरा भणिता ।।३५॥ ( विहरदि जाव जिणिदो ) विहरति पर्यटति आर्यखण्डे यावत्सम्बोधनं करोति जिनेन्द्रस्तीर्थकर-परमदेवः । स कथंभूतः ( सहसट्ठसुलक्खणेहिं संजुत्तो) अष्टाधिक-सहस्रलक्षणः संयुक्तः । ( चउतीस अइसयजुदो) चतुस्त्रिशदतिशययुतः ( सा पडिमा थावरा भणिया ) सा प्रतियातना प्रतिविम्बं प्रतिकृतिः स्थावरा भणिता। इह मध्यलोके स्थितत्वात् स्थावरप्रतिमेत्युच्यते । मोक्षगमनकाले एकस्मिन् समये जिन-प्रतिमा जङ्गमा कथ्यते । व्यवहारेण तु चन्दन कनक-महामणिस्फटिकादि-घटिता प्रतिमा स्थावरा । समवसरण-मण्डिता जङ्गमा जिनप्रतिमा प्रतिपाद्यते।
अथ कानि तानि जिन लक्षणानि अष्टाधिकसहस्रसंख्यानीति चेदुच्यन्ते
गाथा-एक हजार आठ शुभ लक्षणोंसे युक्त तथा चौंतीस अतिशयों से सहित तीर्थकर भगवान् जब तक यहां विहार करते हैं तब तक उनको स्थावर प्रतिमा कहा गया है ॥ ३५ ॥
विशेषार्थ-तीर्थंकर परम देव श्रीवृक्ष आदि १०८ लक्षणों और तिल मसा आदि नौ सौ व्यञ्जनों से सहित होते हैं तथा दश जन्मके, दश केवलज्ञान के और चौदह देवकृत इस तरह चौंतीस अतिशयों से सहित होते हैं । इन सब से युक्त तीर्थकर जिनेन्द्र जब तक आर्यखण्ड में भव्यजीवों को संबोधते हुए विहार करते रहते हैं जब तक उन्हें स्थावर प्रतिमा कहा जाता है और जब वे समस्त कर्मोंका क्षय करके एक समय में सिद्धशिला की ओर अग्रसर होते हैं तब उन्हें जङ्गम प्रतिमा कहते हैं । प्रतिमा, प्रतियातना, प्रतिबिम्ब और प्रतिकृति ये सब प्रतिमाओं के नाम हैं । व्यव. हार की अपेक्षा चन्दन, सुवर्ण, महामणि तथा स्फटिक आदि से निर्मित प्रतिमा स्थावर प्रतिमा कहलाती है और समवसरण में सुशोभित विहार करने वाली जिन-प्रतिमा-तीर्थकर परमदेव का शरीर जङ्गम प्रतिमा कही जाती है।
अब तीर्थकर के शरीर में पाये जाने वाले एक हजार आठ लक्षण कोन कोन हैं यह प्रकट करते हैं-श्रीवृक्ष, हाथ और पैरोंमें शब, कमल,
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