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________________ उपयोगी बनता है, वैसे ही पूजा हेतु स्नान आदि करने पर जीव हिंसा आदि होती है, लेकिन जिन पूजा से आत्मा में उत्पन्न शुभ अध्यवसाय अशुभ कर्मों की निर्जरा व शुभ पुण्य कर्मों का उपार्जन करते है । मन में जो शुभ अध्यवसाय उत्पन्न होते है वे पाप कर्मों के नाशक व शुभ पुण्य कर्मों के सर्जक होते है । अत: समकित प्राप्ति का कारण होने से जिन पूजा को निष्पाप - निर्दोष समझनी चाहिए । प्र. 284 ललित विस्तरानुसार पूजा के प्रकारों के नाम बताइये । उ. चार प्रकार 1. पुष्प पूजा 2.. आमिष (नैवेद्यादि) पूजा 3. स्तोत्र पूजा 4. प्रतिपति पूंजा । प्र. 285 पुष्प पूजा किसे कहते है ? उ. उ. पुष्पादि के द्वारा जिनबिम्ब को स्पर्श करके जो परमात्मा की नवांगी पूजा की जाती है, उसे पुष्प पूजा कहते है 1 प्र. 286 आमिष पूजा किसे कहते है ? उ. गर्भद्वार (मूल गंभारे) के बाहर परमात्मा के सामने नैवेद्य आदि के द्वारा जो अग्र पूजा की जाती है, उसे आमिष पूजा कहते है । जैसे - पंच वर्णों का स्वस्तिक करना, विविध प्रकार के फल, भोजन सामग्री चढ़ाना एवं दीपक करना आदि । प्र. 287 स्तोत्र पूजा किसे कहते है ? स्तुति - चैत्यवंदनानदि के द्वारा जिनेश्वर परमात्मा की भाव पूजा करना, स्तोत्र पूजा कहलाती है I प्र. 288 प्रतिपति पूजा से क्या तात्पर्य हैं ? उ.3 जिनाज्ञा का सम्पूर्ण पालन करना अर्थात् सर्वज्ञ पुरुष के उपदेश का पालन चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी Jain Education International For Personal & Private Use Only 71 www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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