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चैत्य का अर्थ व प्रकार प्र.164 चैत्य शब्द की व्युत्पति कैसे हुई ? उ. सिद्ध हेमशब्दानुशासन के अनुसार 'वर्णाद दृढादि त्वात् ट्यणि' 7/
11/59 सूत्र में चित्त' शब्द में ट्यूण प्रत्यय लगने से चैत्य शब्द बना है। पाणिनी व्याकरण के अनुसार सूत्र 5/1/123 'वर्णदृढादिभ्य ष्यञ्च' से चित्त शब्द में 'स्यञ्च' प्रत्यय लगाने से चैत्य शब्द बनता है । चित्त
का अर्थ है - अन्तकरण । चित्त के कार्य को चैत्य कहते है । प्र.165 चैत्य शब्द से क्या तात्पर्य है ? उ. चैत्य अर्थात् जिन मंदिर और जिन प्रतिमा ।
'चैत्यानि प्रशस्त चित्त समाधिजनकानि बिंबानि-अरिहंत चेइआणि जिन सिद्ध प्रतिमा इत्यर्थः' अर्थात् प्रशस्त चित्त में समाधि उत्पन्न करवाने वाली जिनेश्वर परमात्मा (अरिहंत, सिद्ध) की प्रतिमा चैत्य कहलाती है। 'चित्यायां भवम् चैत्यम्' अर्थात् परमात्मा की स्मारक स्थली यानि . परमात्मा की निर्वाण भूमि पर बनाया गया स्मृति स्वरुप स्तूप परमात्मा के पगले, प्रतिमा आदि चैत्य कहलाते है । आचार्य श्री हेमचन्द्राचार्यानुसार - "चैत्यो जिनोक स्तद बिम्बं चैत्यो जिन सभातरु" जिस अशोक वृक्ष के नीचे विराजमान होकर तीर्थंकर परमात्मा देशना फरमाते है, उस अशोक वृक्ष को भी चैत्य कहा जाता है। 'चित्ता ह्लादकत्वाद् वा चैत्या' (ठाणांगवृत्ति 4/2) जिसको देखने से चित्त में आह्लाद् उत्पन्न होता है ।
चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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