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अनुबंध चतुष्टय का कथन प्र.148 अनुबन्ध चतुष्टय किसे कहते है ? । उ. किसी भी ग्रंथ के प्रारंभ में जिन चार आवश्यक बातों का कथन अवश्यमेव
किया जाता है, उसे अनुबन्ध चतुष्टय कहते है । प्र.149 अनुबन्ध चतुष्टय में कौन सी चार बातों का कथन किया गया है? उ. 1. विषय 2. संबंध 3. अधिकारी 4. प्रयोजन ।।
प्रज्ञापना मलय, वृत्ति पत्रांक 1-2 प्र.150 चैत्यवंदन भाष्य में किन विषयों का उल्लेख किया गया है ? उ. चैत्यवंदन भाष्य में चैत्य (प्रतिमा), वंदना के प्रकार, आगार, आशातना,
कायोत्सर्ग आदि 24 द्वारों का उल्लेख किया गया है। प्र.151 ग्रन्थ के प्रारम्भ में विषय का स्पष्टीकरण क्यों आवश्यक है ? उ. ग्रन्थ के प्रारम्भ में विषय का स्पष्टीकरण करने से पाठक/स्वाध्यायी . सुगमता से चुनाव कर सकते है कि प्रस्तुत ग्रंथ का पठन-पाठन/अध्ययन
मेरे लिए उपयोगी है या नही । रुचिगत विषय होने पर स्वाध्यायी की
स्वाध्याय में प्रवृत्ति आसान हो जाती है । प्र.152 अधिकारी से क्या तात्पर्य है ? • उ. जो ग्रन्थ का पठन-पाठन कर सकता है, वह अधिकारी कहलाता है । प्र.153 अधिकारी कौन-कौन हो सकते है ? उ.. जिन्हें आप्तवचनों (तीर्थंकर परमात्मा के वचन) पर पूर्ण श्रद्धा हो, जो
तत्त्व पिपासु हो, ऐसा श्रद्धावान् जिज्ञासु, सम्यग्दर्शी ग्रंथाध्ययन का अधिकारी हो सकता है।
+++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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