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________________ प्र. 143 परिभाषित कीजिए ? उ. 1. सिक्खितं (शिक्षित ) - आदि से अंत तक पूर्ण रुप से सूत्र को पढ़ना । 2. ठितं (ठित ) - स्मृति कोश में सूत्र अच्छे से जमा हो । 3. जितं (जित ) -- पाठ को इतना स्थिर कर लेना कि पुनरावर्तन के समय तुरन्त स्मृति में आ जाये । 4. मितं ( मित्त) सीखे हुए ग्रन्थ का श्लोक, पद, वर्ण, मात्रा आदि का निर्धारण करना । 5. परिजितं (परिजित ) - ग्रंथ पाठ इतना कंठस्थ हो जाता कि क्रम या व्युत्क्रम. दोनों प्रकार से दोहराना । 6. णामसमं (नामसम ) - स्वनाम की तरह ग्रन्थ के प्रत्येक भाग को स्मरण करना । 7. घोससमं (घोषसम ) - गुरू म. से सूत्र ग्रहण करते समय उदात्त, अनुदात स्वरों का आरोह, अवरोह पूर्वक उच्चारण करना । 8. अहीणक्खरं ( अहीनाक्षर ) तथा अणच्चक्खणं (अन्त्याक्षर ) हीन व अधिक अक्षर दोषों से रहित सूत्रों का उच्चारण करना । 9. अव्वाइद्धक्खरं ( अव्याविद्धाक्षर ) - सूत्राक्षर क्रमिक न बोलकर आगे-पीछे करके पाठ करना । 10. अक्खलियं ( अस्खलित ) बिना अटके सूत्रों का उच्चारण करना । 11. अमीलयं ( अमीलत ) साथ उच्चारित न करके " चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी Jain Education International - - - अनेक सूत्रों को मिलाकर जल्दी में एक प्रत्येक पदानुसार छुटा-छुटा बोलना । For Personal & Private Use Only 37 www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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