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________________ प्र.136 अनुयोग वृद्ध किसे कहते है ? उ. पदार्थ को स्पष्ट करने वाले पूर्व पुरुष, अनुयोग वृद्ध कहलाते है । प्र.137 श्रुत केवली व तीर्थंकर केवली में क्या अन्तर है ? उ. श्रुत केवली का ज्ञान परतः (परोक्ष) प्रमाण होता है । जबकि तीर्थंकर केवली का ज्ञान स्वतः (प्रत्यक्ष) प्रमाण होता है। क्योंकि जिस तत्त्व व सत्य को तीर्थंकर अपने ज्ञान द्वारा प्रत्यक्ष अनुभूत करते है, उसी तत्त्व को श्रुत केवली परोक्ष रुप से श्रुत ज्ञान द्वारा जानते है। प्र.138 क्या चौदह पूर्वधारी और दश पूर्वधारी श्रुत केवली सम्यग्दृष्टि होते है ? उ. हां, ये दोनों नियमतः सम्यग्दृष्टि होते है। प्र.139 आगम कौनसी भाषा में रचित होते है ? उ. अर्ध मागधी (प्राकृत भाषा में) भाषा में रचित होते है। प्र.140 जब भाष्यकार ने 'सुयाणुसारेण' कह दिया फिर अलग से वृत्ति, ... भाष्य और चूर्णि के कथन को क्यों कहा ? उ. 1. भाष्यकार ने अनेक तथ्य सूत्रों (आगम) से लिए है, तो कहीं वृत्ति, भाष्य, चूर्णी आदि से भी ग्रहण किये है, इसलिए वृत्यादि का कथन ... अनिवार्य रुप से करना पड़ा । 2. सूत्रों के साथ वृत्ति, भाष्यादि भी प्रामाणिक है, सूत्र-सम्मत एवं सैद्धान्तिक है । वे भी उतने ही आदरणीय और प्रमाणभूत है जितने कि सूत्र (आगम), क्योंकि सूत्र की भाँति वृत्यादि के कर्ता भी विशिष्ट पुरुष (ज्ञानी) सम्यग्दृष्टि, पूर्वो के ज्ञाता है। इस बात को समझाने i ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ 4 चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी 35 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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