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* "सिद्धाः नित्या अपर्यवसानस्थितिकत्वात् प्रख्यात वा भव्यरूपलब्धगुण संदोहत्वात् । जो नित्य अर्थात् अपर्यवसित है, वे सिद्ध है । जो भव्य जीवों द्वारा गुणसंदोह के कारण प्रख्यात है, वे सिद्ध है । "णट्ठट्ठकम्मबंधा अट्ठमहागुणसमण्णिया परमा । लोयग्गठिया णिच्चा सिद्धा ते एरिसा होति ।" जिन्होंने आठ कर्मों के बंध को नष्ट कर दिया है, आठ महागुणों से युक्त है, परम है, लोकाग्र में स्थित है तथा नित्य है, वे सिद्ध परमात्मा है। सव्वे सरा नयटृति तक्का जत्थ न विज्जई । मइ तत्थ ण गाहिया, आए अप्पईट्ठाणस्स खेयन्ने ।" जहाँ से समस्त शब्द वापस लौटते है (शब्द वर्णन करने में समर्थ न हो), जहाँ तर्क (कल्पना) पहुंच नही सकता, जो बुद्धि ग्राह्य नही है, ऐसी सिद्धावस्था है।
आचारांग सूत्र (1/5/6) प्र.1543 'सिद्ध' की अलग-अलग व्याख्याओं के अर्थ को समाविष्ट
करनेवाली गाथा बताइये । ध्यातं सितं येन पुराणकर्म यो वा गतो निर्वृत्ति सौधमुनि । ख्यातोऽनुशास्ता परिनिष्ठातार्थो यः सोऽस्तु सिद्ध कृतमंगलो मे ॥ अर्थात् जिन्होंने पूर्व बद्धित समस्त प्राचीन कर्मों को नष्ट कर दिया है, जो मुक्ति रूपी महल के चोटी तक पहुंच गये है, जो मुक्ति मार्ग के अनुशास्ता के रूप में प्रख्यात है तथा जिनके समस्त प्रयोजन सिद्ध हुए
है ऐसे श्री सिद्ध परमात्मा मेरे लिए मंगल रूप हो । .प्र.1544 सिद्ध गति के पर्यायवाची शब्द लिखिए । उ. 1. मोक्ष 2. मुक्ति 3. निर्वाण 4. सिद्धि-सिद्धगति-सिद्धिगति, सिद्धदशा ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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